मध्यप्रदेश

Bhopal: संस्कार और प्रगति का सुंदर समन्वय है निराला का साहित्यः डॉ. साधना बलवटे

निराला सृजनपीठ, साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम वर दे

भोपाल। निराला सृजनपीठ, साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित वर दे शीर्षक से कविता, व्यंग्य एवं गजल पाठ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम पुरुषार्थ, ई-115-15 शिवाजी नगर में आयोजित किया गया। इसमें निराला सृजनपीठ की निदेशक डॉ. साधना बलवटे ने कहा कि एक ओर निराला संगीत के सूक्ष्म अध्येता हैं तो दूसरी ओर यथार्थ को कहने वाले कवि, उपन्यासकार हैं। उनकी कविताओं जो लय है प्रवाह है ,छंदों का जो प्रयोग है पढ़कर लगता है उन्हें संगीत का अच्छा ज्ञान था। यथार्थ को कहने की शैली सहज ही व्यंग्य का रूप ले लेती है। कुकुरमुत्ता कविता में व्यंग्य की दोहरी धार है। किन्तु फिर भी निराला यथार्थ को कहते हुए कभी उच्छृंखल नहीं होते संस्कार और प्रगति का सुंदर समन्वय है उनका साहित्य।

संघर्ष और विषाद का जीवन था निराला का…
साहित्यकार पिलकेंद्र अरोड़ा ने कहा कि निरालाजी का जीवन गरीबी और संघर्ष का जीवन था। दुख और विषाद का जीवन था। यदि उनके जीवन में साहित्य और संगीत के चश्मे न होते तो उनका जीवन गर्म रेत का एक मरुस्थल बनकर रह जाता। विनय उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि वे शब्द की आत्मा में बसे गहरे नाद को उसके अंतः संगीत को पहचानते थे। वे श्रृंगार, लालित्य और रस-भाव के शिल्पी थे। ‘वर दे’ और ‘बादल राग’ से लेकर ‘वह तोड़ती पत्थर’ तक आते-आते निराला नए प्रयोगों की मिसाल गढ़ते हैं लेकिन कविता का आरोह-अवरोह और उसका ध्वनि सौन्दर्य कभी कम न हुआ।

साहित्यकार सुरेश पटवा ने कहा कि निराला के काव्य और उपन्यासों में सामाजिक बुराइयों, शोषण, और विसंगतियों पर करारा व्यंग्य मिलता है। शोषक पूंजीवादी समाज के ऐश्वर्य और विलास के खिलाफ व्यंग्यात्मक प्रहार उनकी कुकुरमुत्ता कविता में मुखरित हुआ है। वहीं ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ उपन्यास सामाजिक ढांचे पर करारा व्यंग्य है। सत्र का सफल संचालन शशि बंसल ने किया।

ग़ज़ल सत्र की अध्यक्षता डॉ. नुसरत मेहंदी ने की उन्होंने कहा कि ग़ज़ल वह इंसानी जज़्बात और एहसास की अभिव्यक्ति है, जो दिल से निकलकर दिल तक पहुँचती है और अभिव्यक्ति किसी एक भाषा की सीमा में बंधी नहीं होती। इसका सौंदर्य इसकी भावना में है। इसलिए उर्दू ग़ज़ल हिंदी ग़ज़ल जैसा कुछ नहीं होता, ग़ज़ल, ग़ज़ल होती है। बस आपम के अंदर शेर कहने की योग्यता और सलीका हो क्योंकि…

शेर अच्छा बुरा नहीं होता
या तो होता है या नहीं होता

  1. उन्हीं के सिर पे नगीनों के ताज होते हैं, अलाहिदा ज़रा जिनके मिज़ाज होते हैं…।- मनीष बादल
  2. मैं अपने कांधों पे ढो रही हूं, वो बोझ जो के मेरा नही है,ज़रा सी बात को कितना कहेंगे…। -खुशबू श्रीवास्तव
  3. मैंने सोचा डूब मरूं पर, दुनिया में गहराई नहीं थी, काम सभी कर डाले हैं, बस जीना ही बाकी है…- शशांक पटेरिया
  4. दीवार, छत, किवाड़ सभी रोए साथ में, बारिश के दु:ख अलग ही हैं कच्चे मकान के…। —संदीप श्रीवास्तव
  5. इसी अंदाज़ ने दुनिया को हैरानी पे रखा है, जो हमने दुश्मनों को भी मेहरबानी पे रखा है…।- चित्रांश खरे
  6. मैं न रातों का हूं जुगनू न कोई तारा पर, उसकी आंखों में बता फिर भी चमकता क्यों हूं…।- संतोष खिरवड़कर

व्यंग्य सत्र

  1. मुकेश वर्मा ने अध्यक्षता की एवं संचालन डॉ मीनू पांडे ने किया
    1.शशांक दुबे -रचना का शीर्षक: तीन बातें हमेशा याद रखिए
    एक पंक्ति: तीन बातें छुपाए नहीं छुपती: कपड़ों पर पान मसाले का दाग, खाया हुआ प्याज और कमाया हुआ ब्याज
  2. मुकेश जोशी उज्जैन – सड़क से नरक तक मनोहर बाबू शीर्षक से व्यंग्य सुनाया
  3. मलय जैन -दफ़्तर की एक मरदूद मक्खी , जो चेंबर के बाहर उड़ते , यहां-वहां बैठते यह जानती थी कि विजिटर पर्ची भेजे बिना बॉस का बाप भी भीतर नहीं आ सकता।
    4 -कुमार सुरेश ने सुनाया, प्रश्न, आप इस कानून का विरोध क्यों कर रहे हो, कानून का विरोध हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये हमारे संगठन की विरोधी सरकार ने बनाया है….।
  4. विजी श्रीवास्तव -साहित्य के वन मंडल का लंगड़ा हिरण
    साहित्य के वन मंडल में मुझे अपनी भूमिका लंगड़े हिरण की सी लगती है, जिसे असहाय पाकर हर कोई अपनी रचना सुना जाता है। मैं न तो भाग पाता हूं और न सींग मार पाता हूं। बस एक तड़प…एक ही क्या, तड़प ही तड़प।
    6.सुदर्शन सोनी -पहला वर्गीकरण उसके ओरीजिन के आधार पर करते हैं। कुछ लोग पैदायशी अधिकारी होते हैं।

कविता सत्र
अध्यक्षता रामाराव वामनकर ने की एवं संचालन अनूप धामने ने किया
1.डॉ. कपिल भार्गव – काटते हैं वृक्ष भी, खोखली कर दी पहाड़ी, यही तो है मेरा घर, जहां पर बैठकर मोर का झुंड निडर होकर ताकता है…।
2.अभिलाषा श्रीवास्तव -मैं किस्सा हूं किरदारों का, तुम गीतों की सुरताल लिए, मैं पल-पल हूं यदि गुमसुम सी,तुम क्षण-क्षण मधुर खयाल लिए…।
3.प्रभा मिश्रा – अंतर्देशीय पत्र सा जीवन, तीन पृष्ठ ,तेरह सौ बातें… ।
4.मधुलिका सक्सेना – दिल के टुकड़े की प्रथम झलक प्रिय को पाने की गहन ललक, वह कनबतियां करती नज़रें, वो नवविवाहिता के नखरे, हर पल को
5.सुनीता यादव अमिट बनाता हूं, मैं बांध समय को लेता हूं…।
अनूप धामने -लिपट लिपट कर यार स्वरों में छंद बनेंगे हम
मन से मन को जोड़े वो अनुबंध बनेंगे हम
पूरा उनसा होना मुमकिन भले नही यारो
थोड़े थोड़े यार विवेकानन्द बनेंगे हम

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