धर्म/अध्यात्म

प्रेमानन्द जी ने बताया— कैसे अपने बच्चों को भगवान के मार्ग में चलाएँ

पांच बातों का ले संकल्प सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बहुत अच्छे से समझाया

वृंदावन के राधावल्लभी संप्रदाय के संत पूज्य श्री प्रेमानंद महाराज से जब किसी ने यह सवाल किया कि कैसे अपने बच्चों को यह शिक्षा दें कि वे धर्म के मार्ग पर चल सकें, अपनी राह से ना भटकें और भगवत प्राप्ति कर सकें? तो इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बहुत अच्छे से समझाया कि पाँच बातों का संकल्प लें और बच्चों के सामने इन्हें करें।

पहला—सुमिरन, किसी भी एक ईश्वर का नाम जो आपको प्रिय लगे उसका हमेशा सुमिरन करें।

दूसरा— सेवा, अपने बच्चों को यह जरूर सिखाएँ कि माता—पिता की सेवा, गुरू की सेवा, भगवान की सेवा, परिवार की सेवा,पशु—पक्षियों की सेवा और सुमिरन सेवा करना उनका धर्म है। इसका अभ्यास उन्हें अच्छे से करवायें। ऐसे उदाहरण उनके सामने प्रस्तुत करें जिससे सेवा का भाव उनके अंदर आ जाए।

तीसरा—स्वाध्याय, गीता,भागवत जी या किन्हीं महापुरुषों के वचनों को रोज नियम से सुनें और उनको अपने जीवन में उतारें।

चौथा—सत्संग, किसी एक संत या महापुरुष जिससे आपका मन मिलता हो सुनें, चाहे 30 मिनिट ही सुनें, परंतु रोज सत्संग सुनें। उन्होंने कहा कि आजकल तो मोबाईल की सुविधा सबको है, जिसकी वजह से कहीं जाये बिना ही आप जहाँ चाहे वहाँ से सत्संग सुन सकते हैं।

पाचवाँ— समाधि, समाधि का मतलब एक घंटा कम से कम आप ऐसा समय निकालें जिसमें आप कुछ ना करें, शांत होकर बैठ जाएँ और एकमात्र चिंतन केवल भगवन नाम का करें। बार—बार यदि मन भटके तो लिखे हुए नाम को ध्यानपूर्वक देखें। जब भी आप स्वाध्याय करें तो अपने बच्चे को बैठा लें। परिवार के यदि सब लोग बैठ करके नाम जाप करें तो बच्चे उससे जरूर सीखेंगे। बच्चों की छोटी—छोटी बातें मानने के लिए बदले में उनसे भगवन नाम का जाप करवायें। वे अवश्स करेंगे क्योंकि आप संस्कार डाल रहे हैं। माता—पिता के चरण छूना, माता—पिता से सभ्यता से बात करना ये सारे संस्कार अभी से सिखायें। जब आप बच्चों को गीता और भागवत सुनाएँगे तो समझ में चाहे भले ना आवे लेकिन उन पर प्रभाव पड़ने लगेगा। यह सत्य वाक्य है क्योंकि बच्चे अपने बड़ों का अनुसरण करके ही बचपन से सीखते हैं।

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