वैशाख माह: धर्म, पुण्य और तप का गौरवमयी काल

भोपाल।हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास वर्ष का दूसरा मास होता है, जो धर्म, तप और दान के लिए अत्यंत शुभ और पुण्यदायक माना गया है। यह महीना चंद्र और सूर्य दोनों ही गणनाओं में विशेष महत्व रखता है और इसे “मासों में श्रेष्ठ” कहा गया है—अर्थात् यह माह महीनों में श्रेष्ठतम है। हम यहाँ बताने जा रहे हैं वैशाख माह की कुछ खास बातें जो इसे खास बनाती हैं
पुण्य की प्रबलता
शास्त्रों में वर्णित है कि वैशाख मास में किया गया स्नान, दान, जप, उपवास और ब्रह्मचर्य विशेष फलदायक होता है। यह महीना पापों का नाश करने वाला और पुण्य संचय करने वाला माना गया है।
तीर्थ स्नान का महत्व
इस माह में सूर्योदय से पूर्व तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती आदि में किया गया स्नान जन्म-जन्मांतर के दोषों का नाश करता है।
अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है, जो हर प्रकार के शुभ कार्यों के लिए अत्यंत मंगलकारी मानी जाती है। इसी दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म भी हुआ था।
श्रीहरि और सूर्योपासना का समय
वैशाख मास में भगवान विष्णु की पूजा, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ तथा श्रीमद्भागवत का श्रवण अत्यंत फलदायक होता है। साथ ही, सूर्य नारायण की उपासना भी इस माह में विशेष फलदायिनी मानी गई है।
अन्नदान और जलदान का विशेष महत्व
गर्मियों के इस काल में प्यासे प्राणियों को जल पिलाना, छायादान करना, अन्न एवं वस्त्र दान देना अत्यंत पुण्यदायी कहा गया है। यह मानवता के कर्तव्य और धर्म के श्रेष्ठ स्वरूप का परिचायक है।
व्रत और संयम की साधना
इस महीने में धार्मिक व्रत, एकादशी उपवास, सत्यनारायण कथा और सत्संग करने से मन और आत्मा को शांति मिलती है। यह साधना और संयम का श्रेष्ठ काल है, जिसमें व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है।
अत:वैशाख मास केवल एक कालखंड नहीं, बल्कि वह अध्यात्मिक ऋतु है जिसमें प्रकृति और मनुष्य दोनों का शुद्धिकरण होता है। यह समय है पवित्र कर्मों, गहरी साधना और परोपकार का, जो जीवन को नई दिशा और गहराई प्रदान करता है।