Bhandara : हिंदू धर्म में भंडारा क्यों कराया जाता है? क्या है इसका महत्व? “

नई दिल्ली। हिंदू संस्कृति में भंडारा केवल भोजन कराने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सेवा, समानता और श्रद्धा की जीवंत अभिव्यक्ति है। जब किसी धार्मिक आयोजन, व्रत, पूजन या पर्व के उपरांत भंडारा कराया जाता है, तो उसका उद्देश्य आध्यात्मिक पूर्णता, सामाजिक समरसता और पुण्य की प्राप्ति होता है। आईए जानते हैं भंडारे के महत्व के विभिन्न पहलुओं को:
धार्मिक पक्ष
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, अन्नदान को श्रेष्ठतम दान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि भूखे को भोजन कराना ईश्वर की सेवा के समान है। पूजा-पाठ या यज्ञ के बाद जब भंडारा कराया जाता है, तो वह आयोजन की पवित्रता को पूर्ण करता है और आयोजक को पुण्य फल देता है। यह ईश्वर की कृपा को समाज के साथ साझा करने की एक साधना भी मानी जाती है।
सामाजिक महत्व
भंडारा सामाजिक स्तर पर समानता और समरसता का प्रतीक है। इसमें जात-पात, वर्ग, धर्म या सामाजिक स्थिति का कोई भेद नहीं होता। सब लोग एक पंक्ति में बैठकर एक जैसा भोजन करते हैं। यह परंपरा लोगों को आपस में जोड़ती है और सेवा भाव को बढ़ावा देती है।
सेवा और आत्मिक संतोष
भंडारे में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों के लिए यह सेवा एक आत्मिक अनुभव होती है। जब कोई अपने हाथों से भोजन परोसता है, तो उसमें विनम्रता, त्याग और कर्तव्य भावना का विकास होता है। यह कार्य व्यक्ति को मानसिक शांति और संतोष प्रदान करता है।
सांस्कृतिक परंपरा
भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक मेलों, मंदिरों और तीर्थ स्थानों में भंडारे एक अनिवार्य अंग होते हैं। गुरु नानक देव के लंगर से लेकर कुंभ मेले के अन्नक्षेत्र तक, यह परंपरा हमारे लोकजीवन में गहराई से रची-बसी है।
भंडारा केवल भोजन का आयोजन नहीं, बल्कि वह धर्म, समाज और आत्मा—तीनों के बीच सामंजस्य का एक माध्यम है। यह “अतिथि देवो भवः” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसे मूल्यों को धरातल पर उतारने का कार्य करता है।