December 7, 2024

Ashwathama: अष्टजीवियों में से एक, आज भी शिव मंदिर में पूजा करने जाता है अश्वत्थामा

Ashwathama

Ashwathama: दुनिया में हैरतअंगेज कारनामों और चीजों की कमी नहीं है। हर जगह एक से बढ़कर एक चमत्कार देखने मिलते हैं जो ना सिर्फ हैरत में डालते हैं, बल्कि सोचने पर भी मजबूर कर देते हैं कि क्या सही है या यह सचमुच संभव है। जी हां, आज हम बात करने जा रहे हैं महाभारत के सबसे चर्चित किरदारों में से एक अश्वत्थामा की, जो कि अष्टजीवियों में से एक है और भगवान ​श्री कृष्ण के श्राप के कारण आज भी पृथ्वी पर यहां वहां भटक रहे हैं। अश्वत्थामा को शिव भक्त भी माना जाता है जिसकी वजह से उनकी मौजूदगी का अहसास लोगों को जब—तब होता रहता है।

मिल गया श्राप
महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा (Ashwathama) को श्राप दिया था कि जब तक सूरज चांद रहेगा, तब तक वह इस पृथ्वी पर भटकता रहेगा। कहा जाता है कि अश्वत्थामा ने द्वेष वश पांडवों से बदला लेने के लिए उसने उत्तरा को भी मारने का प्रयास किया ताकि अर्जुन का वंश समाप्त हो जाए। बताया जाता है कि उन दिनों उत्तरा गर्भ से थी और उसके पुत्र की गर्भ में ही मृत्यु हो गई थी। तब श्रीकृष्ण ने उत्तरा के पुत्र को जीवित किया और गुस्से में आकर अश्वत्थामा को चिरकाल तक धरती पर कोढ़ी बनकर भटकने का श्राप दिया था। कृष्ण के इसी श्राप की वजह से अश्वत्थामा (Ashwathama) अमर हो गया था। जो अब तक भटक रहा है।

जन्म के समय रोने से आई घोड़े की आवाज
अश्वत्थामा (Ashwathama) पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। वह जन्म से ही अपने पिता की तरह पराक्रमी और धनुर्विद्या में माहिर था। एक बार संतान प्राप्ति के लिए द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपि ने हिमालय जाकर तप किया। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया और ​अश्वत्थामा का जन्म ​हुआ, लेकिन अश्वत्थामा (Ashwathama) ने जब जन्म लिया तो उसके रोने की आवाज में अश्व अर्थात घोड़े जैसी आवाज सुनाई देने लगी। उसके माथे पर मणि लगी हुई थी। इसी वजह से द्रोणाचार्य ने उसका नाम करण अश्वत्थामा रख दिया।

लेना चाहता था बदला
पिता की मृत्यु के बाद ​अश्वत्थामा टूट गया वह किसी भी तरह अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहता था। द्रोणाचार्य के होते कौरवों को हराना आसान नहीं था वह पांडवों के गुरु थे किंतु उन्होंने युद्ध कौरवों की तरफ से लड़ा था। श्री कृष्ण ये बात जानते थे कि उनके होते कौरवों को परास्त करना आसान नहीं होगा। उन्होंने इसका तोड़ निकाला और यह बात फैला दी की अश्वत्थामा की मृत्यु हो चुकी है। बेटे की मृत्यु के बात सुनकर द्रोणाचार्य टूट गए और उन्होंने युद्धभूमि में हथियार छोड़कर बेटे की मौत पर शोक मनाना शुरू कर दिया। तभी मौका पाकर राजा द्रुपद ने उनका वध ​कर दिया। अश्वत्थामा किसी भी स्थिति में इस छल का बदला लेना चाहता था और इसलिए उसने उत्तरा में पल रहे गर्भ का वध कर दिया।

श्री कृष्ण ने खींच ली माथे की मणि
कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा (Ashwathama) के माथे पर लगी मणि को खींच लिया यह मणि उसके माथे पर जन्म से ही लगी थी और उसे श्राप दिया कि तुम इस संसार में चीरकाल तक भटकते रहोगे और यह मणि का घाव तुम्हे तुम्हारे दुष्कर्म की याद दिलाता रहेगा।

इस किले में आता है पूजा करने
माना जाता है कि असीरगढ़ ​के किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा आज भी पूजा करने आता है। वह प्रतिदिन यहां पूजा करता है। पास ही बने तालाब से जल और फूल लेकर भगवान शिव को अर्पित करता है। जब भी सुबह इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को देखा जाता है तो उस पर एक फूल चढ़ा हुआ मिलता है। हालांकि आज तक कोई नहीं देख पाया कि इस शिवलिंग पर पूजा करने कौन आता है। (Ashwathama)

जंगलों में भटकते लोगों ने कई बार देखा
अश्वत्थामा (Ashwathama) के जीवित होने के प्रमाण जब तब सामने आते रहते हैं। कुछ सालों पहले मंडला के जंगलों में भटकने और लोगों द्वारा देखे जाने के समाचार भी सामने आए थे। लोक कथाओं के अनुसार उसके माथे से रिसने वाले घाव से ही लोग उसे अश्वत्थाम के रुप में पहचान पाते हैं। वह अनन्य शिव भक्त है और असीरगढ़ के किले में स्थित शिव मंदिर में शिव पूजा करने अवश्य ही जाता है।

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