Bhopali Batua : भोपाल सबसे प्रसिद्ध और अद्वितीय मनके के काम के लिए जाना जाता है। मनके का मतलब “मोती का काम भी होता है। यह मनका काम पोटली बैग, पर्स, वॉलेट, कुशन कवर आदि पर उपलब्ध है। भोपाली बटुआ इस प्राचीन भोपाल शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है जो कुछ वरिष्ठ कारीगरों की भक्ति के कारण बची हुई है।
माना जाता है कि बटुआ शिल्प परंपरा गोंड जनजाति से जुड़ी हुई है जो पारंपरिक रूप से हड्डियों, हाथी दांत, लकड़ी और सीप से विदेशी आभूषण बनाने में कुशल थे। इस पारंपरिक कौशल ने बाद में भोपाल की बेगमों (मुस्लिम महिला शासकों) का ध्यान आकर्षित किया जिन्होंने इस शिल्प का संरक्षण कर समर्थन किया और इसे एक फारसी स्पर्श दिया। बेगमों द्वारा महिलाओं के लिए आय के स्रोत के रूप में बटुआ बनाना और जरदोजी शुरू किया गया था। आज भी, ये शिल्प महिला सशक्तीकरण और बेरोजगारी से निपटने के लिए सरकारी प्रयासों में एक संभावित सहायता के रूप में काम कर सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि कुदसिया बेगम(गौहर बेगम), भोपाल की लगातार चार महिला शासकों में से पहली थीं, जिन्होंने स्थानीय जौहरी से पहली बार इन्हें बनवाया था। आज भी, बेगमों के समय से राजपरिवार के बटुआ राज्य संग्रहालय और गोलघर संग्रहालय (तत्कालीन सचिवालय) में रखे हुए देखे जा सकते हैं।Bhopali Batua
एक पैटर्न विकसित कर सुंदर और जटिल रूप से बुना गया यह वास्तव में शिल्प का एक अनूठा नमूना है। इनका इस्तेमान छोटे सिक्के, सुपारी, खुशबू की बोतलें, लॉग, पान और अन्य माउथ फ्रेशनर रखने के लिए किया जाता है। भोपाल अपने बटुआ के लिए प्रसिद्ध रहा है और आज भी है, जिसका प्रमाण एक स्थानीय दोहे से मिलता है:
“चार चीज तौफी भोपाल
बटवा, गुटका, चुनेटी और रुमाल “।
बदलते दौर में इसका स्वरूप भी बदला है। इसका आकर्षण भोपाल से निकलकर पूरी दुनिया में छा गया है। अरब देशों के साथ अमरीका, ब्रिटेन, जापान, चीन और इंडोनेशिया में भी इसकी मांग बढ़ी है।अब बॉलीवुड के सितारों की भी यह पसंद है। रेखा, दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट समेत कई अभिनेत्रियों की फिल्मों में भोपाल की यह कला दिखी। नवाबी दौर से चलकर, विदेशियों के मन को लुभाकर, बॉलीवुड में छाया भोपाली बटुआ इन दिनों शादियों में भी धूम मचा रहा है।Bhopali Batua