यहीं तानसेन ने की थी ‘श्रीगणेश स्तोत्र’ की रचना
Ganesha Temple: ग्वालियर (Gwalior), बेहट के ऐतिहासिक झिलमिलेश्वर शिव मंदिर में तानसेन को आवाज मिली थी, वहीं गणेश मंदिर परिसर में वे संगीत का रियाज करते थे। मान्यता है कि संगीत सम्राट तानसेन ने बेहट में स्थित शिवालय व गणेश मंदिर में बैठकर ही ‘श्रीगणेश स्तोत्र’ की रचना की थी। ग्वालियर से 55 किमी दूर तानसेन की जन्म स्थली बेहट के ऐतिहासिक गणेश मंदिर में ही तानसेन का हकलाना दूर हुआ था।
‘उठि प्रभात सुमिरियै, जै श्री गणेश देवा, माता जा की पार्वती पिता महादेवा। ‘ गणेश चतुर्थी पर कई सदियों से घरों में गाई जाने वाली ये वंदना संगीत सम्राट तानसेन की देन है। कहा जाता है कि पहले उन्हें हकलाने की समस्या थी, जिसकी वजह से वे ठीक से नहीं बोल पाते थे। किंतु भगवान गणेश के आशीर्वाद से उन्होंने स्वयं को रामतनु से तानसेन में परिवर्तित होते देखा।
ग्वालियर (Gwalior) में ही तानसेन (Tansen)का मकबरा बना हुआ है। तानसेन या रामतनु हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक महान ज्ञाता थे। अकबर ने तानसेन को कांताभरण वनविलास की उपाधि दी। वे रीवा के राजा रामचंद्र सिंह और अकबर के भी दरबारी कवि थे। वह गायन की ध्रुपद शैली में विशिष्ट थे। उन्होंने रात्रि राग दरबारी कान्हरा, भोर राग मियां की टोडी, मध्याह्न राग, मियां की सारंग, मौसमी राग मियां की मल्हार का आविष्कार किया था।