Entertainment
नृत्यों में मानवीय अभिव्यक्तियों का रसमय प्रदर्शन
Published
3 months agoon
By
ICJ24 Desk
Khajuraho dance festival 2022 Third day
Watch Live
मध्यप्रदेश भोपाल : नृत्य एक ऐसी सार्वभौम कला है, जो मानव जीवन के साथ ही अस्तित्व में आ गई थी। नृत्यों में मानवीय अभिव्यक्ति का रसमय प्रदर्शन भी उदात्त रूप से होता है सो नृत्य हमें लुभाते भी खूब है। नृत्यों की इस खूबी का साक्षात्कार आपको यदि करना है तो आइए खजुराहो के नृत्य महोत्सव में । समारोह में आज तीसरे दिन मोहिनी अट्टम ,भरतनाट्यम से लेकर कथक तक शास्त्रीय नृत्यों की प्रस्तुतियों में रस ओर भाव का उदात्त स्वरूप देखने को मिला। फगुनाई हवाओं के मंद मंद झोंकों के बीच, भारत के सांस्कृतिक वैभव की थाती खजुराहो के कंदरिया और जगदम्बी मंदिरों की आभा में सजे मंच पर जैसे नृत्यों के रंग बिखरे तो लगा कि सारा आलम झूम रहा है।

आज की पहली प्रस्तुति मोहिनी अट्टम की थी। सुदूर दक्षिण के राज्य केरल का शास्त्रीय नृत्य मोहिनी अट्टम अदभुत नृत्य शैली है। त्रिवेंद्रम्ब कि नीना प्रसाद ने बड़े सहज और सधे भावों के साथ इसे प्रस्तुत किया। मोहिनी अट्टम का अर्थ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से है जो उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान भस्मासुर को मारने के लिए धरा था। अट्टम यानी नृत्य। खैर, नीना जी की पहली प्रस्तुति चोलकट की थी। ये गणेश बन्दना के स्वर थे।
दक्षिणी राग रीतिगौला और अट्ट ताल में सजी इस रचना पर उन्होंने गणेश बन्दना के अद्भुत भाव प्रकट किए। इसके बाद की प्रस्तुति पदवर्णम की थी। माता गंगा की स्तुति और महिमा को प्रतिपादित करती रचना – ” माते गंगा तरंगिणी करुणाम भुवि” पर नीना जी ने शानदार प्रस्तुति दी। मिस्र चाप ताल और राग काम्बोजी में सजे गीत संगीत पर रस और भावों की अभिव्यंजना को उन्होंने अपने पद और अंग संचालन के साथ बखूबी पेश किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने आकाश गंगा भू गंगा और पाताल गंगा तीनों को साकार किया। नृत्य का समापन उन्होंने गीत गोविन्दम की अष्टपदी से किया। कुरु यदुनंदन रचना पर उन्होंने राधा कृष्ण के प्रेम को मोहिनीअट्टम के लास्य से साकार करने की कोशिश की। इस प्रस्तुति में गायन पर पंडित माधव नम्बोदरी, वायलिन पर वी एस के अन्नादुरई, मृदंगम पर रामेशबाबू, सितार पर श्रीमती सुमा रानी तथा पढन्त व नटवांग (खंजीरा) पर श्री उन्नीकृष्णन ने साथ दिया।
दूसरी प्रस्तुति में बैंगलौर के पार्श्वनाथ उपाध्याय और उनके साथियों सुश्री श्रुति गोपाल एवं आदित्य पीवी ने भरतनाट्यम की अद्भुत प्रस्तुति दी। “आभा : ए रीटेलिंग ऑफ द रामायण ” नाम की यह प्रस्तुति रामायण की एक छोटी सी कथा है।जब श्री राम, सीता और लक्ष्मण 14 वर्षों के लंबे समय के बाद अयोध्या लौटते हैं तो उनके राज्य के लोग उनका तहे दिल से स्वागत करते हैं।जैसे-जैसे दिन बीतते हैं, राजा राम ने लोगों द्वारा उनकी अवहेलना करने की अफवाहें सुनीं क्योंकि सीता चार महीने तक रावण के महल में रहीं।सीता को बिना शर्त प्यार करने वाले राम और राजा के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा करने वाले राम के बीच, राजा राम भावनात्मक लड़ाई जीत जाते हैं। इसके बाद जैसे ही लक्ष्मण सीता को वन में ले जाते हैं, वे टूट जाते हैं। सीता क्रोधित और निराश लक्ष्मण को शांत करती हैं और कहती हैं “मैं लक्ष्मी हूँ। मुझे कौन छोड़ सकता है?
पार्श्वनाथ और उनके साथियों ने बड़े ही कौशल के साथ ये प्रस्तुति दी। हिमांशु श्रीवास्तव और श्रीमती रूपा मधुसूदन द्वारा रचित गीत-” लोक लक्ष्य लक्ष्मी मैं माया, कौन मुझे त्याग कर पाया? ” पर ये प्रस्तुति लोगों के दिलों को छू गई । राग देश, शंकराभरण और काफी के सुरों तथा एकताल और आदि ताल में निबद्ध इस रचना पर तीनों कलाकारों ने अपने नृत भावों के साथ अंग और पद संचालन का जो कमाल दिखाया वह अद्भुत रहा। प्रस्तुति में रोहित भट उप्पूर एवम रघुराम गायन पर थे,जबकि मृदंग पर हर्ष समागम, बाँसुरी पर जयराम किक्केरी, सितार पर सुमारानी ने साथ दिया। प्रकाश नागराज का था।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में मुम्बई से आईं लेकिन इंदौर की बेटी टीना तांबे के कथक नृत्य से हुई। आपके नृत्य में कथक के तीन घराने लखनऊ, जयपुर और रायगढ़ की खुशबू को महसूस किया जा सकता है। उनके नृत्य में तेजी तैयारी देखी जा सकती है। उन्होंने माता भवानी की प्रस्तुति से अपने नाच का आगाज़ किया। पखावज अंग की कहरवा ताल में राग अड़ाना के सुरों में पगी रचना- पर आपने स्तुति के पुष्प अर्पित किए। अगली प्रस्तुति शुद्ध नृत्य की थी। धमार ताल की विविध लयकरियों के साथ आपने बड़े ओजपूर्ण ढंग से ये प्रस्तुति दी।
इसमें आपने उपज ,उठान, ठाट, आमद, कुछ परनें, परमेलु और तत्कार की तैयारी भरी प्रस्तुति दी। नृत्य का समापन उन्होंने मीरा के भजन – या मिहान के मैं रूप लुभानी” पर भाव से किया। भजन के दो भाग हैं एक राधा कृष्ण के प्रेम के श्रंगार और दूसरा मीरा के भक्ति रस का है। दोनों भाग क्रमश: राग यमन और तोड़ी के सुरों में सजे हैं । अद्धा तीनताल में निबद्ध इस प्रस्तुती को आपने बड़े ही भाव प्रवणता से पेश किया। आंखों के संचालन और मुख मुद्राओं से आपने कृष्ण और राधा के श्रृंगारिक भाव को साकार किया तो वहीं मीरा की भक्ति को भी हस्त और मुख मुद्राओं से साकार किया। रसिक मुग्ध थे। आपके नृत में लखनऊ की नजाकत, जयपुर की तैयारी और पैरों का काम तथा रायगढ़ की उत्कृष्टता का संगम देखा जा सकता है। टीना जी की ये प्रस्तुति खूब सराही गई। आपके साथ तबले पर सत्यप्रकाश मिश्रा, सितार पर अलका गुर्जर, पढन्त पर निशा नायर गायन व हारमोनियम पर वैभव मांकड़ ने साथ दिया।
हमें अपनी संस्कृति और उसके मूलधारों को समझना जरूरी
कलावार्ता में डॉ मनीषा पाटिल का व्याख्यान
भोपाल। समकालीन चित्रकला हो या मूर्तिकला उनमें रोमन या ग्रीक जैसी पाश्चात्य संस्कृति का व्यापक असर रहा है,और ये असर आज भी देखने को मिलता है लेकिन समकालीन भारतीय चित्रकारों और मूर्तिकारों ने पाश्चात्य के असर से परे जाकर न केवल भारतीयता का अपना मुहावरा गढ़ा बल्कि भारतीय शिल्प एवं चित्रकला की मौलिकता को प्रतिपादित किया। ये कहना है मुम्बई की प्रख्यात चित्रकार एवं सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई की प्रिंसिपल रही डॉ मनीषा पाटिल का। वे आज यहां खजुराहो नृत्य महोत्सव के तहत अनुषांगिक कार्यक्रम कलावार्ता में कला के विद्यार्थियों और कला रसिकों के साथ संवाद कर रहीं थीं।
सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट के संदर्भ में उन्होंने उसकी स्थापना से लेकर अब तक की विजुअल आर्ट की विकास यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि बॉम्बे स्कूल केवल सर जे जे स्कूल तक सीमित नहीं है बल्कि उस पूरे रीजन में जो कला का वातावरण है ,को हम बॉम्बे स्कूल कहते हैं । 1837 में जब स्कूल की स्थापना हुई तब अंग्रेजी हुकूमत थी। ऐसे ही तीन और स्कूल चेन्नई, कोलकाता और लाहौर में शुरू हुए।चूंकि अंग्रेजों की हुकूमत थी सो उनका इंफ्लुएंस होना लाजिमी ही था। कला के उनके अपने मानक थे, सो जाहिर है यहाँ पढ़ने वाले उस असर से मुक्त नहीं हो सके।
विषय वस्तु और विचार के स्तर पर भारतीय होते हुए भी तकनीकी रूप से उनके कलाकर्म में अंग्रेजियत का असर रहा। उनके कला कर्म में ग्रीक और रोमन शैलियां प्रचुरता में देखी जा सकती है। लेकिन एक अरसे बाद आर्ट के क्षेत्र में पुनरूत्थान वादी युग की शुरुआत हुई। तब रज़ा , बेंद्रे, चिंचालकर अमृता शेरगिल जैसे तमाम कलाकारों ने अपने कलाकर्म में भारतीयता को जगह दी।
डॉ पाटिल ने विभिन्न स्लाइड्स के प्रेजेन्टेशन के जरिये विजुअल आर्ट की विकास यात्रा तत्कालीन शिक्षण पद्धति आदि को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति में जो सौंदर्य है वो कहीं और देखने को नहीं मिलता। अंग्रेज इस सौंदर्य को समझ नहीं सके ,उन्हें अब जाकर इस बात का अहसास हुआ है। उन्होंने बताया कि अमृता शेरगिल जैसी चित्रकार जो विदेश में ही पैदा हुई और जो अंग्रेजियत में पली बढ़ी , वह जब भारत लौटी तो उसका नजरिया पूरी तरह बदल गया। उनकी “तीन बहनें” शीर्षक वाली पेंटिंग को दिखाते हुए उन्होंने बताया कि उनकी पेंटिंग इस बात का प्रमाण है कि उनका कलाकर्म किस तरह बदला और भारतीय परिवेश उसका हिस्सा बना।
डॉ मनीषा पाटिल ने विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिए और कहा कि हमें अपनी संस्कृति और उसके मूलाधारों की समझने और ज्ञान को बढ़ाने की जरूरत है। मौजूदा पीढ़ी में बे इसकी कमी पाती हैं। ज्ञान के आधार को बढ़ाना बेहद जरूरी है। कार्यक्रम में वरिष्ठ चित्रकार लक्ष्मीनारायण भावसार नेभी अपने विचार साझा किए। शुरू में जाने माने संस्कृतकर्मी एवं कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने विषय प्रवर्तन किया और वार्ता का संचालन भी किया। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे ने डॉ श्रीमती पाटिल का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया। इस अवसर पर अकादमी के उपनिदेशक राहुल रस्तोगी भी उपस्थित रहे।
चल चित्र में शोभना नारायण पर फ़िल्म का प्रदर्शन: खजुराहो नृत्य महोत्सव की दूसरी अनुषांगिक गतिविधि चल चित्र में आज प्रख्यात कथक नृत्यांगना शोभना नारायण के जीवन और उनके सांस्कृतिक अवदान पर फ़िल्म ” शोभना” का प्रदर्शन किया गया। 56 मिनिट की इस फ़िल्म का निर्देशन अपर्णा सान्याल ने किया है। इसके बाद पारंपरिक आदिवासी चित्रकला पर केंद्रित फ़िल्म ” द किंगडम ऑफ गॉड ” का प्रदर्शन किया गया। इसका निर्देशन रणवीर रे ने किया है। खजुराहो नृत्य समारोह के तहत चल रहे चल चित्र का संयोजन राज बेन्द्रे कर रहे हैं।
नैपथ्य में कीजिये कथक यात्रा के दर्शन
भोपाल। खजुराहो नृत्य महोत्सव के अन्तर्गत लगाई गई प्रदर्शनी “नैपथ्य” एक अनूठा उपक्रम है। जैसा कि नैपथ्य का अर्थ ही है “पर्दे के पीछे ” उसी तरह इस प्रदर्शनी में जो कुछ भी है वो सब कुछ पर्दे के पीछे का ही है। पिछले आठ सालों से समारोह का हिस्सा बने नैपथ्य में हर साल किसी न किसी नृत्य शैली पर केंद्रित चीजें प्रदर्शित की जाती है। इस बार की प्रदर्शनी कथक पर केंद्रित है। प्रख्यात कथक नृत्यांगना और पंडित बिरजू महाराज की शिष्या मैत्रीय पहाड़ी के संयोजकत्व में लगाई गई इस प्रदर्शनी में कथक के सांस्कृतिक परिदृश्य एवं उसकी विकास यात्रा को दिखाया गया है।
प्रदर्शनी में कथक के चारों घरानों – लखनऊ, जयपुर बनारस, और रायगढ़ से जुड़ी चीज़ें हैं। मसलन इसमें चारों घरानों के पुराने कलाकारों के चित्र आप देख पाएंगे। इसके अलावा कथक में इस्तेमाल होने वाले परिधान और पोशाकें आभूषण से लेकर तमाम चीजें आप यहां देख सकते हैं और इनके जरिए कथक की विकास यात्रा को समझ सकते हैं। प्रदर्शनी में कथक के सम्राट पंडित बिरजू महाराज का अँगरखा भी आप देख सकेंगे। खास बात ये है कि युवा नृत्यांगनाएं प्रदर्शनी में लाइव नृत्य कर आम जनमानस को नृत्य संस्कृति से जोड़ने का काम करती हैं।
कथक सम्राट पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज के व्यक्तित्व पर केंद्रित प्रदर्शनी भी अपने आप में अदभुत है। उनके नृत्यगत अवदान के मद्देनजर यह प्रदर्शनी लगाई गई है। इस प्रदर्शनी में पंडित बिरजू महाराज के 60 छायाचित्र लगाए गए हैं। इन चित्रों में कुछेक ऐसे हैं जिनमे बिरजू महाराज लता मंगेशकर उस्ताद जाकिर हुसैन जैसी तमाम हस्तियों के साथ हैं तो ज्यादातर चित्र उनकी नृत्यरत मुद्राओं पर हैं इनमें घुंघरू बांधते हुए किसी विशेष भाव मे लीन उनकी भाव मुद्राएं आप देख सकते हैं।