January 17, 2025

Kharmas:कैसे हुई खरमास की उत्पत्ति? क्यों निषेध हैं खरमास में शुभ कार्य?

Kharmas: खरमास की उत्पत्ति हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र से जुड़ी हुई है। यह एक पारंपरिक अवधारणा है, जो विशेष रूप से भारतीय समाज में प्रचलित है। खरमास को ज्योतिषीय दृष्टिकोण से एक विशेष काल माना जाता है।  इस अवधारणा का जन्म हिंदू कैलेंडर और ग्रहों की गति से जुड़ी मान्यताओं से हुआ।

खरमास, सौरमास एक महीना होता है, ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, जब सूर्यदेव देवताओं के गुरु बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करते हैं, तो खरमास लगता है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार  ब्रह्मांड की परिक्रमा के दौरान निरंतर चलते रहने के कारण सूर्य की गर्मी से उनके घोड़े प्यास और थकान से व्याकुल हो गए। घोड़ों की ऐसी दयनीय दशा देखकर सूर्य उन्हें विश्राम देने और उनकी प्यास बुझाने के लिए रथ रुकवाने का विचार कर ही रहे थे कि उन्हें अपनी अनवरत चलने वाली प्रतिज्ञा का स्मरण हो आया। वे चिंतित अवस्था में आगे बढ़ रहे थे कि तभी उन्हें एक तालाब के पास दो खर (गधे) दिखाई दिए, उनके मन में यह विचार आया कि जब तक उनके घोड़े पानी पीकर विश्राम करते हैं तब तक इन खरों को रथ में जोत कर आगे की यात्रा को जारी रखा जाए। सूर्य की आज्ञा पर सारथी ने खरों को रथ में जोत दिया और खर मंद गति से रथ को लेकर परिक्रमा पथ पर निकल पड़े। मंद गति के कारण सूर्य का तेज भी मंद होने लगा। सूर्य के रथ को खरों द्वारा खींचने के कारण ही इसे खरमास का नाम दिया गया। Kharmas

इसीलिए खरमास जिसे हिंदू कैलेंडर में पौष महीना भी कहा जाता है सूर्य की ऊर्जा और तेज दोनों काफी कम होते हैं और प्रकृति में ठंडक का आभास सबसे ज्यादा होता है। यही कारण है कि इस समय को शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता। यह मास आत्मिक जागरण के लिए उत्तम है। खरमास में मंगल कार्यों जैसे यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, विवाह, मुंडन, नामकरण संस्कार, नवीन कर्म, करियर, दुकान, कार्यालय के शुभारंभ का निषेध बताया गया है। जब ग्रहों की स्थिति शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं होती। विशेष रूप से, इस समय को ‘सप्ताहीन’ और ‘मंझला’ माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह समय स्थिर नहीं होता और इसमें किसी भी काम में दीर्घकालिक सफलता की संभावना कम होती है। Kharmas

इस मास में सूर्य और बृहस्पति की आराधना विशेष फलदायी होती है। गरुड़ पुराण के अनुसार खरमास में प्राण त्यागने पर सद्गति नहीं मिलती है। इसलिए भीष्म पितामह ने अपने प्राण खरमास में नहीं त्यागे और उन्होंने सूर्य की उत्तरायण होने का इंतजार किया था। ज्योतिष के अनुसार, खरमास का समय प्राकृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी शांत होता है। यह समय जीवन के अन्य क्षेत्रों में स्थिरता, शांति और आत्मनिरीक्षण का होता है। इस अवधि में धार्मिक अनुष्ठान, पूजा, तपस्या और आत्मशुद्धि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। सूर्य के मकर में गोचर के साथ खरमास का अंत होता है। सूर्य के मकर में गोचर को मकर संक्रांति कहते हैं। Kharmas

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