September 16, 2024

Sanatan Dharma: सनातन धर्म में प्रणाम का महत्त्व

Sanatan Dharma

Sanatan Dharma : सनातन धर्म में प्रणाम का अति महत्व है. हमारी संस्कृति है.वेदों में भी इसका महत्व बताया गया है। प्रेम, अनुशासन, शीतलता, आदर सिखाता है वहीं प्रणाम आंसू धो देता है प्रणाम से सुविचार आते हैं, प्रणाम झुकना सिखाता है और अहंकार मिटाता है।Sanatan Dharma

प्रणाम क्यों करें ?

प्रणामोशीलस्य नित्यं वृद्धोपि सेविन:,
तस्य चत्वारि वर्धन्ते, आयु: विद्या यशो बलं।

अर्थात– प्रणाम करने वाले और बुजुर्गों की सेवा करने वाले व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल चार चीजें अपने आप बढ़ जाती हैं।

सीय राममय सब जग जानी,
करउं प्रनाम जोरि जुग पानी।

बन्दउं सन्त असज्जन चरना,
दु:खप्रद उभय बीच कछु बरना।

इसका अर्थ है कि वह सभी को प्रणाम करने का सन्देश देते हैं। उनके अनुसार सम्पूर्ण संसार में भगवान व्याप्त हैं, इसलिए सभी को प्रणाम किया जाना चाहिए।

ऐसी मान्यता है कि यदि आप किसी साधक को प्रणाम करते हैं, तो उसकी साधना का फल आपको बिना कोई साधना किए मिल जाता है। प्रणाम करने से अहंकार भी तिरोहित होता है। जिससे मनुष्य परमार्थ की दिशा में कदम आगे बढ़ता है। वेदों में ईश्वर को प्रणाम करने की व्यवस्था है।

श्रीरामचरितमानस में कहा गया है,

हरि व्यापक सर्वत्र समाना,
प्रेम ते प्रकट होइ मैं जाना।

ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, जो प्रेम के वशीभूत होकर प्रकट हो जाता है। इसलिए चेतन ही नहीं, जड़ वस्तुओं को भी प्रणाम किया जाए, तो वह ईश्वर को ही प्रणाम है, क्योंकि कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां ईश्वर नहीं है…शास्त्रों में इसके भी उदाहरण मिलते हैं।

श्रीरामचरितमानस का सन्दर्भ लें तो स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम ने अपने गुरु को मन में ही प्रणाम किया था।

गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा,
अति लाघव उठाइ धनु लीन्हा।

अर्थात – उन्होंने मन-ही-मन गुरु को प्रणाम किया और बड़ी स्फुर्ती से धनुष उठा लिया। इस प्रकार प्रणाम के रहस्य को समझ कर उसे जीवन में लागू किया जाए, तो अनेक रहस्यपूर्ण अनुभव होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं।

जमीन पर पूरा लेटकर माथा टेकने को साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है। यह एक आसन है जिसमें शरीर का हर भाग जमीन के साथ स्पर्श करता है। इस आसन के जरिए आप ईश्वर को यह बताते हैं कि आप उसे मदद के लिए पुकार रहे हैं। यह आसन आपको ईश्वर की शरण में ले जाता है।

​साष्टांग प्रणाम

पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरस्तथा।
मनसा वचसा दृष्टया प्रणामोऽष्टाङ्ग मुच्यते॥

हाथ, पैर, घुटने, छाती, मस्तक, मन, वचन, और दृष्टि इन आठ अंगों से किया हुआ प्रणाम अष्टांग नमस्कार कहा जाता है। साष्टांग आसन में शरीर के आठ अंग ज़मीन का स्पर्श करते हैं अत: इसे ‘साष्टांग प्रणाम’ कहते हैं। सनातन धर्म में शामिल हर एक व्यवस्था का अपना महत्व रहा है। ठीक उसी प्रकार प्रणाम का भी महत्व है।Sanatan Dharma

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