इतिहासकार भी नहीं बता पाए अधूरे मंदिर की पूरी कहानी
Bhojeswar Mandir :विश्व का सबसे प्राचीन शिव मंदिर आज भी है अधूरा, जानिए इसके पीछे की कहानी साल के 12 महीनों में सावन के महीनें को सबसे पवित्र माना जाता है। क्योंकि सावन माह भगवान शिव का अतिप्रिय महीना है। स्कंद पुराण में इस महीने की पूरी कहानी भगवान शिव ने सनत्कुमार को बताई है। पौराणिक कथाओं में भी सावन मास का वर्णन आता है। इस माह में दुनियाभर के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए जाते हैं।
Bhojeswar Mandir ऐसे ही मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सटा हुआ भोजेश्वर मंदिर, विश्वभर में सबसे बड़ी और प्राचीन शिवलिंग के लिए जाना जाता है। इस विश्व विख्यात भोजेश्वर मंदिर में पूरे सालभर दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। यह अद्भुत मंदिर बेतवा नदी के किनारे पहाड़ी पर प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। पहाड़ियों के बीच बेतवा का कल कल बहता पानी और हरा भरा जंगल मंदिर का सिंगार साबित होता है। यहां भारी संख्या में श्रध्दालु और पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। इस अधूरे शिव मंदिर के पीछे दो रोचक कहानियां चलती हैं। साहित्यकारों का अलग अलग मानना है। Bhojeswar Mandir
Bhojeswar Mandir क्या हैं किंवदंतियां
इस मंदिर के निर्माण के बारे में दो कथाएं काफी प्रचलित हैं। लोगों के अनुसार, इस शिव मंदिर को वनवास के समय पांडवों ने बनवाया था। कहा जाता है कि,भीम घुटनों के बल पर बैठकर इस शिवलिंग पर फूल अर्पित करते थे। इस मंदिर का निर्माण माता कुंती की पूजा के लिए द्वापर युग में पांडवों ने किया था। वहीं इस मंदिर के पास से बेतवा नदी भी बहती है। जहां कुंती द्वारा कर्ण को छोड़ने की भी प्रचलित है। माना जाता है कि, मंदिर का निर्माण पांडवों के द्वारा एक ही रात में किया गया था। जैसे ही सुबह हुई तो पांडव वहां से चले गए और मन्दिर आजतक अधूरा ही रह गया।
Bhojeswar Mandir वहीं दूसरी कहानी ऐसी भी प्रचलित है। इस मंदिर का निर्माण मध्यभारत के परमार वंशीय राजा भोज ने 11वीं सदी में करवाया था। राज भोज के नाम पर ही इस मंदिर का नाम भोजेश्वर मंदिर रखा गया। कहा जाता है कि,राजा भोज प्रतापी और विद्वान राजा थे। लेकिन वर्तमान में यह मन्दिर ऐतिहासिक स्मारक के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है।
भोजेश्वर मंदिर Bhojeswar Mandir अपने आप में अद्भुत है। लेकिन आज तक कोई इतिहासकर सही प्रमाणित नहीं कर पाया है कि, इसका निर्माण आज तक अधूरा क्यों है? इस मंदिर की गुंबद पूरी क्यों नहीं बन पाई ? ऐसा क्या हुआ जो इसका काम बीच में ही रोक दिया गया?
इसका कारण आजतक अज्ञात है।