December 23, 2024

Dr. Bhimrao Ambedkar : बचपन के संघर्षो से तपकर दिखा अलग मुकाम, बनाया दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान

Dr. Bhimrao Ambedkar

Dr. Bhimrao Ambedkar : छुआछूत  ,गरीबी में पला बड़ा एक बालक ,किसे पता था कि वो आगे चलकर दुनिया के सबसे बडे़ लिखित संविधान का निर्माता बनेगा।आज उसी जन नायक की पुण्यतिथि है जिसने दुनिया के हर वर्ग के व्यक्ति को शिक्षा ,और समाज में सिर उठा कर जीने का अधिकार दिलाया । भेद-भाव छुआछूत जात -पात ,ऊंच -नीच जैसी सोच को खत्म कर कुप्रथा को दूर किया।जिन्होंने हमारे देश की नींव रखी। जिन्होंने इंसान को इंसान का सम्मान करना सिखाया।जी हां , हम बात कर रहे हैं भीमराव अंबेडकर की ,जिन्हें बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से जाना जाता है, भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं।आज उनकी पुण्यतिथि पर उनका जीवन संघर्ष, शिक्षा, और समाज सुधार के प्रयासों का उदाहरण है। खास बात यह है कि मध्य प्रदेश उनके जीवन का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां से उनकी संघर्ष यात्रा का आरंभ हुआ।Dr. Bhimrao Ambedkar

आज उनकी पुण्यतिथि पर, हम उनके बचपन, उनकी उपलब्धियों और मध्य प्रदेश के साथ उनके गहरे संबंधों को याद करते हैं।

बचपन संघर्षों के बीच जीवन की शुरुआत
भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू (अब डॉ. अंबेडकर नगर) में एक गरीब दलित परिवार में हुआ था। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ, जब जातिगत भेदभाव अपने चरम पर था। उनका परिवार अछूत माने जाने वाले महार जाति से था, और इसी वजह से उन्हें समाज में अपमान और बहिष्कार का सामना करना पड़ा।

उनके पिता, रामजी मालोजी सकपाल, ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार थे। हालांकि परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था, लेकिन उनके पिता ने शिक्षा का महत्व समझा और भीमराव को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया।

स्कूल में भीमराव को अन्य बच्चों के साथ बैठने और समान व्यवहार पाने का अधिकार नहीं था। जातिगत भेदभाव का सामना करते हुए भी, उन्होंने शिक्षा के प्रति अपनी लगन को कभी कम नहीं होने दिया। यह महू की भूमि थी, जहां से उनके जीवन में संघर्ष और प्रेरणा की कहानी शुरू हुई।Dr. Bhimrao Ambedkar

शिक्षा का सफर ,भारत से विदेश तक
भीमराव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सतारा और बॉम्बे (अब मुंबई) में पूरी की। इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए बॉम्बे विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उनकी प्रतिभा और ज्ञान ने उन्हें छात्रवृत्ति दिलाई, जिसके तहत उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाई की।

भीमराव अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल एक महान विद्वान बनाया, बल्कि सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए तैयार किया।Dr. Bhimrao Ambedkar

मध्य प्रदेश से संबंध: प्रेरणा और सामाजिक आंदोलनों का केंद्र
मध्य प्रदेश, विशेषकर महू, डॉ. अंबेडकर के जीवन में ऐतिहासिक महत्व रखता है। यही वह भूमि थी, जहां उन्होंने बचपन में जातिगत भेदभाव का सामना किया और इसी अनुभव ने उन्हें सामाजिक न्याय के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।

महू आज “डॉ. अंबेडकर नगर” के रूप में उनकी स्मृति का सम्मान करता है। यहां स्थित उनकी जन्मस्थली पर बना स्मारक हर साल लाखों अनुयायियों और पर्यटकों को उनकी महानता का एहसास कराता है।

इसके अलावा, मध्य प्रदेश में अंबेडकर द्वारा शुरू किए गए सामाजिक सुधार आंदोलनों का गहरा प्रभाव पड़ा। उनके विचारों ने दलितों और समाज के वंचित वर्गों को संगठित होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।Dr. Bhimrao Ambedkar

एक जननायक के रूप में उभरना
भारत लौटने के बाद, डॉ. अंबेडकर ने देखा कि समाज में जातिगत भेदभाव और असमानता गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। उन्होंने अछूतों के अधिकारों के लिए कई आंदोलन शुरू किए। 1927 में महाड़ सत्याग्रह के माध्यम से उन्होंने दलितों को सार्वजनिक जल स्रोतों और मंदिरों तक पहुंच दिलाने के लिए संघर्ष किया।

डॉ. अंबेडकर ने 1930 में “राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस” में भाग लिया और ब्रिटिश सरकार के सामने दलितों के अधिकारों की वकालत की। उनकी कोशिशों ने समाज के वंचित वर्गों को न केवल राजनीतिक अधिकार दिलाए, बल्कि उन्हें आत्मसम्मान का भाव भी दिया।Dr. Bhimrao Ambedkar

संविधान निर्माण और ऐतिहासिक योगदान
1947 में, स्वतंत्र भारत के संविधान को बनाने की जिम्मेदारी डॉ. अंबेडकर को सौंपी गई। संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भारत के संविधान को हर नागरिक के लिए समान अधिकार, न्याय, और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाला दस्तावेज बनाया।

उनके प्रयासों ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूती दी और समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाया।

धर्म परिवर्तन और अंतिम दिन
डॉ. अंबेडकर ने महसूस किया कि जातिगत भेदभाव से मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन आवश्यक है। 14 अक्टूबर 1956 को, उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और लाखों अनुयायियों को समानता और करुणा का संदेश दिया।

6 दिसंबर 1956 को, उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी विरासत आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करती है।Dr. Bhimrao Ambedkar

डॉ. अंबेडकर की विरासत: प्रेरणा का स्रोत
मध्य प्रदेश, जहां से उनकी यात्रा शुरू हुई, आज भी उनके विचारों और योगदान का साक्षी है। उनकी पुण्यतिथि पर, महू में श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग जुटते हैं।उनकी पूजा करते है।

डॉ. अंबेडकर का जीवन हमें संघर्ष, शिक्षा और समानता के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है। उनके विचार और आदर्श आज भी एक समान और न्यायपूर्ण समाज बनाने की दिशा में मार्गदर्शक हैं।

“मैं वह पहला व्यक्ति था जिसने दलित वर्ग को यह महसूस कराया कि वे भी मनुष्य हैं।”

डॉ. भीमराव अंबेडकर Dr. Bhimrao Ambedkar

सर्दियों में त्वचा का ध्यान रखने के लिए, अपनाएं ये टिप्स क्रिसमस सेलिब्रेशन के लिए 10 ट्रेंडिंग Deliciou केक दुनिया की 10 सबसे महंगी चीजें, जिनकी कीमत जान उड़ जाएंगे होश एक स्टडी ने मर्दों के मुकाबले औरतों के बारे में किया ये खुलासा इन काढ़े को पीने से सर्दी और खांसी से तुरंत राहत