Mahakumbh 2025 : महाकुंंभ 2025 का आरंभ प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से हो रहा है। यह कुल 45 दिनों तक चलेगा और 26 फरवरी को समाप्त होगा। दूर—दूर से अखाड़े और नागा साधु यहां देखने मिलेंगे। इनमें से कईयों ने अपने माथे पर त्रिपुंड का तिलक लगाया होता है। कठिन तप और साधना वाले ये साधु भगवान शिव की अद्भुत भक्तों के माथे पर क्यों नजर आता है ये तिलक, आइए हम आपको बताते हैं.Mahakumbh 2025
प्राय: साधु-सन्तों और विभिन्न पंथों के अनुयायियों के माथे पर अलग- अलग तरह के तिलक दिखाई देते हैं। हिन्दू धर्म में संतों के जितने मत, पंथ और सम्प्रदाय है उन सबके तिलक भी अलग-अलग हैं। भगवान शिव के मस्तक पर और शिवलिंग पर सफेद चंदन या भस्म से लगाई गई तीन आड़ी रेखाएं त्रिपुण्ड कहलाती हैं। ये भगवान शिव के श्रृंगार का हिस्सा हैं। शैव परम्परा में शैव संन्यासी ललाट पर चंदन या भस्म से तीन आड़ी रेखा त्रिपुण्ड बनाते हैं।Mahakumbh 2025
बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर ललाट से नेत्रपर्यन्त और मस्तक से लेकर भ्रकुटी तक त्रिपुण्ड लगाया जाता है। भस्म मध्याह्न से पहले जल मिला कर, मध्याह्न में चंदन मिलाकर और सायंकाल सूखी भस्म ही त्रिपुण्ड रूप में लगानी चाहिए। त्रिपुण्ड की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक के नौ-नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित होते हैं। शरीर के बत्तीस, सोलह, आठ या पांच स्थानों पर त्रिपुण्ड लगाया जाता है।
मान्यता है कि इस प्रकार जो कोई भी मनुष्य भस्म का त्रिपुण्ड करता है वह छोटे-बड़े सभी पापों से मुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है। उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है। त्रिपुण्ड भोग और मोक्ष को देने वाला है। वह सभी रुद्र-मन्त्रों को जपने का अधिकारी होता है।Mahakumbh 2025
कुछ शिव-भक्त शिवजी का त्रिपुण्ड लगाकर उसके बीच में माता गौरी के लिए रोली का बिन्दु लगाते हैं। इसे वे गौरीशंकर का स्वरूप मानते हैं। गौरीशंकर के उपासकों में भी कोई पहले बिन्दु लगाकर फिर त्रिपुण्ड लगाते हैं तो कुछ पहले त्रिपुण्ड लगाकर फिर बिन्दु लगाते हैं।Mahakumbh 2025