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मेघालय: महिला प्रधान राज्य, यहां बेटे नहीं बेटी होती है कुल का दीपक,लड़को को ब्याह कर ले जाती हैं लड़किया

भोपाल।अगर आप लड़की हैं तो आपने कभी न कभी तो जरूर सोचा होगा की काश अगर लड़को की जगह लड़कियां लड़कों को ब्याह के अपने घर ले जाती, लड़कियों की जगह लड़कों की विदाई होती, और लड़कियों तरह लड़के अपने ससुराल अपने मां बाप को छोड़ कर जाते तो कैसा होता ? यह सुनने और सोचने में महज़ एक सपने जैसा लगता है। लेकिन अगर मैं कंहू की भारत में एक ऐसा राज्य है जो पुरूष नही बल्कि महिला प्रधान राज्य है।

जी हां, जहां की बाइन शॉप पर तक महिलाएं बैठती हैं। हम आप कर रहे हैं मेघालय की भारत का एक ऐसा राज्य जिसकी सुंदरता ,संस्कृति इसे भारत के दूसरे राज्यों से अलग और विशेष बनाती है। जो पुरुष प्रधान नहीं बल्कि महिला प्रधान राज्य है। पुरुषों की जगह औरतें पुरुषों को अपने घर ब्याह के ले जाती है। बेटों की जगह यहां घर का चिराग बेटियां मानी जाती हैं।

पुरुषों की होती है विदाई
भारत का मेघालय राज्य जहां शादी के बाद लड़की नहीं बल्कि लड़का अपने ससुराल जाता है। यहाँ लड़कियां अपने पति को ब्याह कर अपने घर ले जाती है। साथ ही उन्हें कमा कर खिलाती भी यहां लड़के पुरूष घर का काम काज करते है। और लड़कियां मर्दों की तरह बाहर कमाने जाती हैं।

किस धर्म को मानती है ये जनजाति
मेघालय के लोगों का धर्म उनकी जनजाति से संबंधित होता है यहां कई प्रकार की जनजाति रहती है। गारो जनजाति के 90 प्रतिशत ,और खासी जनजाति के 80 प्रतिशत लोग यहां ईसाई धर्म को मानते हैं। वहीं हाजोंग जनजाति का 97 प्रतिशत और कोच जनजाति का 98.53 प्रतिशत राभा जनजाति का 94 .60 प्रतिशत लोगों हिंदू धर्म को मानते है।

मेघालय क्यों है मातृप्रधान राज्य
मेघालय के मातृप्रधान राज्य होने के पीछे यहां की कुछ जनजाति हैं। यहाँ खासी , जयन्तिया, मातृवंशीय वंश का पालन करते हैं। इनका वंश माता के वंश से चलता है।

इस राज्य में शराब की दुकाने तक औरते चलाती हैं

यहां बेटों की जगह अपनी संपत्ति बेटियों के नाम की जाती है।मेघालय में पुरुषों की जगह औरतें कमाती है। यहां दुकानों पर मेडिकल स्टोर से लेकर शराब की दुकानों तक को महिलाएं चलाती हैं।और आदमी घर पर रह कर घर का काम करते हैं।

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