श्रावण मास की शिवमय यात्रा – कांवड़ यात्रा का अद्भुत स्वरूप
कांवड़ यात्रा शिव तक पहुंचने की एक जीवंत साधना...

श्रावण मास — वह समय जब श्रद्धा की धारा और शिवभक्ति की शक्ति मिलकर एक पवित्र यात्रा का रूप ले लेती है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा से शिव तक पहुँचने की एक जीवंत साधना है।
कांवड़ यात्रा उसी भक्ति की अद्वितीय अभिव्यक्ति है, जिसमें लाखों श्रद्धालु जल लेकर सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा करते हैं — सिर्फ एक उद्देश्य के लिए: “भोलेनाथ को समर्पण।”
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा के कई स्वरूप होते हैं, और हर रूप भक्ति की एक अलग गहराई को प्रकट करता है?
सामान्य कांवड़
श्रद्धालु रुक-रुककर चलते हैं, लेकिन नियम सख्त है — कांवड़ कभी भूमि को न छुए।
डाक कांवड़
यह तेज गति से, बिना रुके की जाने वाली यात्रा होती है। भक्त सीधा शिवधाम जाकर जल अर्पित करते हैं — यह भक्ति की तीव्रता है।
खड़ी कांवड़
इसमें कांवड़ को सदैव खड़ा रखा जाता है। एक सहयोगी भक्त साथ चलता है, जो संतुलन बनाए रखने में सहायता करता है — यह भक्ति का सामूहिक स्वरूप है।
दांडी कांवड़
सबसे कठिन। हर कदम पर दंडवत प्रणाम। पूरे रास्ते को दंड-बैठक करते हुए नापा जाता है — यह साधना की पराकाष्ठा है।