धर्म/अध्यात्म

40 दिनों तक चलता है सिंधी समाज का चालीहा पर्व, जानिए इसका महत्व

भोपाल। ​सिंधी समाज में चालीहा पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। 16 जुलाई को शुरू हुआ ये पर्व पूरे 40 दिनों तक चलेगा। इसे चालीस महोत्सव नाम से भी जाना जाता है। राजधानी भोपाल में भी इस पर्व को लेकर सिंधी समाज में खासा उत्साह है। समाज के युवक—युवतियों सहित सभी वर्ग इन दिनों कठिन तप का पालन करेंगे। यहां हम आपको इस पर्व के पीछे का महत्व बताने जा रहे हैं।

चालीस दिनों का महत्व

चालिहा साहिब सिंधी हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक 40-दिवसीय उपवास और प्रार्थना का पर्व है। यह भगवान झूलेलाल, जो सिंधी समाज के इष्टदेव हैं, के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का एक तरीका है। इस दौरान भक्त कठिन नियमों का पालन करते हैं, जिसमें ब्रह्मचर्य, जमीन पर सोना, बाल और दाढ़ी न काटना, मांस-मदिरा का त्याग और दिन में केवल एक बार भोजन करना शामिल है।

पर्व के पीछे की मान्यता

चालिहा साहिब के पीछे की मान्यता सिंध के मीरपुर के अत्याचारों से जुड़ी है। कहा जाता है कि मुगल शासक मिरखशाह ने सिंधी हिंदुओं को जबरन इस्लाम में परिवर्तित करने की कोशिश की थी। उस समय, सिंधी समाज ने अपनी आस्था की रक्षा के लिए भगवान झूलेलाल से प्रार्थना की। 40 दिनों के उपवास और तपस्या के बाद, भगवान झूलेलाल एक दिव्य शिशु के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सिंधी समाज को मिरखशाह के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।

यह पर्व उसी ऐतिहासिक घटना की याद में मनाया जाता है और यह सिंधी समाज के लिए अपने धर्म और संस्कृति के प्रति अपनी अटूट आस्था का प्रतीक है। चालीहो के दौरान, भक्त मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और धार्मिक प्रवचनों का श्रवण करते हैं। यह समय आत्म-चिंतन, शुद्धिकरण और आध्यात्मिक उन्नति का होता है। पर्व के समापन पर, भव्य आयोजन किए जाते हैं और भगवान झूलेलाल का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

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