रीवा में सेड्रीज से भी 10 गुना बड़ा भूअर्जन घोटाला आया सामने, ईओडल्यू पहुंचा मामला
पूर्व के कलेक्टर, एसडीएम ने किया 200 करोड़ का घोटाला निजी बैंकों में भू-अर्जन की राशि डमी खातों में घुमाते रहे

भोपाल।सेंड्रीज घोटाला अभी जेहन से उतरा भी नहीं और एक बड़ा भूअर्जन घोटाला हो गया। इसमें कलेक्टर से लेकर एसडीएम और भूअर्जन अधिकारियों का नाम सामने आया है। कई प्राइवेट बैंक भी संलिप्त है। करीब 200 करोड़ से अधिक का घोटाला हुआ है। प्राइवेट बैंकों में भूअर्जन की राशि जमा कर इसे डमी खातों में अधिकारी घुमाते रहे। जांच में खुलासा होने के बाद जिला कलेक्टर को प्रतिवेदन सौंपा गया। कलेक्टर पहले एसपी रीवा के पास प्रकरण दर्ज करने के लिए प्रतिवेदन भेजीं। बाद में ईओडब्लू रीवा को प्रकरण भेजा गया है।
आपको बता दें कि सरकार जिन निजी भूमियों का भूअर्जन करती है। उसका भुगतान भी करती है। इसके लिए शासन से करोड़ों रुपए आते हैं। रीवा में सड़क से एयरपोर्ट, रेलवे लाइन, नहर से लेकर कई बड़े काम हुए। इसमें किसानों की जमीनों का भूमिअधिग्रहण किया गया। किसानों को राशि का भुगतान करने के लिए जो शासन से राशि आई थी। उसे तत्कालीन भूअर्जन अधिकारी और तत्कालीन कलेक्टर्स ने निजी बैंकों में खाते खुलवाकर जमा कर लिए। इसके बाद इस राशि को किसानों को न देकर खुद के उपयोग में लेते रहे।
सालों तक बैंकों में यह राशि जमा रही। अब जाकर इसका खुलासा हुआ। प्राइवेट बैंकों में
करीब 200 करोड़ से अधिक की राशि जमा थी। इसे बैंकों से तो वापस प्रशासन खींच लाया लेकिन कई अधिकारियों का काला चिट्ठा भी खुल गया है। जांच टीम ने कलेक्टर को जांच प्रतिवेदन सौंपा तो उनके भी होश उड़ गए। प्रकरण पहले पुलिस को भेजा गया। पुलिस ने आर्थिक अपराध का मामला बताया। इसके बाद मामला दर्ज करने के लिए रीवा ईओडब्लू को प्रकरण भेज दिया गया है।
डभौरा सेंड्रीज घोटाला सिर्फ 20 करोड़ का था
आपको बता दें कि रीवा में एक बहुचर्चित सेंड्रीज घोटाला हुआ था। इसमें ब्रांच मैनेजर रामकृष्ण मिश्रा ने करोड़ों रुपए का बंदरबांट कर लिया था। इसमें 8 प्रकरण दर्ज किए गए। 23 लोगों पर एफआईआर हुई थी। बाद में आईसीआईसीआई बैंक व अन्य 18 लोगों को भी इसमें शामिल किया गया था। इस मामले में करीब 20 करोड़ रुपए का घोटाला किया गया था। अब इस घोटाले से भी 10 गुना बड़ा घोटाला भूअर्जन का सामने आया है। इसमें भूअर्जन अधिकारी से लेकर आईएएस तक का नाम सामने आ रहा है।
पहले पुलिस थाना में प्रकरण दर्ज करने भेजा गया था प्रकरण
भूअर्जन की राशि में महाघोटाला सामने आने के बाद प्रशासन ने पुलिस में प्रकरण दर्ज करने की कोशिश की थी। इसके लिए जांच प्रतिवेदन एसपी विवेक सिंह के पास भेजा गया था। एसपी विवेक सिंह ने इस मामले को आर्थिक अनियमितता की श्रेणी में माना था। इसे ईओडब्लू के पास भेजने की राय दी थी। इसके बाद प्रशासन ने ईओडब्लू के पास प्रकरण की जांच और कार्रवाई के लिए भेज दिया।
वर्ष 2015 के बाद लग गई थी अलग खाता खोलने की रोक
शासन ने भूअर्जन की राशि के लिए अलग अलग खाता खोलने के लिए वर्ष 2015 में रोक लगा दी थी। शासन ने आदेश दिया था कि जितने भी अलग अलग खाते
सभी बंद कर कलेक्टर के खाते में भूअर्जन अधिकारियों के खुले हैं। राशि जमा कराई जाए। उन्हीं के खाते से ही भूअर्जन की राशि का भुगतान किया जाएगा। इसके बाद भी एसडीएम से लेकर तत्कालीन आईएएस अधिकारी यानि कलेक्टर्स ने भी निजी बैंकों में खाते खोले और करोड़ों रुपए भूअर्जन के जमा कराए थे।
पूरे जिले में कराई गई जांच
इस मामले का खुलासा सीज जमीन के रिकार्ड में हेरफेर से सामने आया था। हुजूर तहसील में पदस्थ बाबू बृजमोहन पटेल ने जमीन को खुद ही नोटसीट बनाकर निजी भूमि स्वामी के नाम जमीन दर्ज कर दी थी। जब इस मामले का खुलासा हुआ तो प्रकरण दर्ज कराया गया। इसके बाद बाबू फरार हो गया। जब उसकी अलमारी खुली तो निजी बैंकों के पासबुक, चेक बुक मिले। तब भूअर्जन की राशि के बंदरबांट का खेल सामने आया। इसके बाद ही पूरे जिले में निजी बैंकों में जमा भूअर्जन राशि की तलाश शुरू हुई
कई बैंकों ने ब्याज की राशि तक वापस नहीं की
भूअर्जन की राशि मुख्य रूप से तीन ही बैंकों में जमा रही इसमें आईडीबीआई, यूनियन बैंक और एचडीएफसी बैंक शामिल थे। इनमें भूअर्जन अधिकारियों ने बैंक खाते खोल कर करोड़ों रुपए जमा किए। जब इन खातों का खुलासा हुआ और राशि बटोरना शुरू किया गया तो कईयों ने ब्याज तक नहीं दिया। ब्याज की राशि संबंधित अधिकारियों ने ही हजम कर ली थी। ब्याज का ही सारा खेल चल रहा था। आईएएस से लेकर अन्य अधिकारी मजे उड़ा रहे थे।
ऐसे चल रहा था भूअर्जन की राशि का खेल
भूअर्जन में जिन किसानों की भूमि फंसती थी। उस भूमि की राशि का भुगतान करने के लिए प्राइवेट बैंकों में अलग खाता खुलवाया गया था। इसमें से आईडीबीआई बैंक करहिया और जॉन टॉवर भी शामिल थे। इसमें भी भू अर्जन अधिकारी और आईएएस के खाते खोले गए थे। इसके अलावा जिन किसानों को भुअर्जन की राशि देनी थी। उनका यहां डमी खाता उनके नाम से खोल दिया गया था। भूअर्जन के करोड़ों रुपए डमी खातों में ही सालों से रोटेट करते आ रहे थे। इसके ब्याज कर्मचारी, अधिकारी डकार रहे थे। वहीं जब किसान भूअर्जन राशि नहीं मिलने का हल्ला मचाता तो डमी खाते से ही उनका भुगतान कर देते।
6 पूरे रीवा जिला में भू-अर्जन की राशि की जांच की गई थी। हमने आईडीबीआई की जांच की थी। जांच पूरी करने के बाद अंतरिम प्रतिवेदन कलेक्टर को सौंप दिया है। इसी मामले में अभी कार्रवाई की जा रही है। खाता खोलने संबंधी जांच दूसरी टीम कर रही है। ईओडल्यू के मामले में एसपी ही बता पाएंगे।