Dhanteras 2025 : महापर्व की प्रथम सीढ़ी धनतेरस
भोपाल।धनतेरस, दीपावली महापर्व की प्रथम सीढ़ी है, जो केवल भौतिक समृद्धि या धन-संपदा के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रकाश की ओर अग्रसर होने का एक सुंदर अवसर भी है। यह पर्व कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और इसे “धनत्रयोदशी” भी कहा जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि, जो आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं, समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।
“आरोग्य ही असली धन है।” भगवान धन्वंतरि केवल शरीर की नहीं, मन और आत्मा की भी चिकित्सा करते हैं। इस दिन हम सोने-चाँदी के बर्तन खरीदते हैं, लेकिन इसके पीछे छिपा गहरा भाव यह है कि जैसे हम धातुओं को शुद्ध रूप में प्राप्त करते हैं, वैसे ही हमें अपने विचारों को भी निर्मल और पवित्र बनाना चाहिए।
धनतेरस पर यमराज को समर्पित दीपक जलाने की परंपरा है। यह केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि मृत्यु के भय को त्याग कर जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा है। दीपक का प्रकाश यह स्मरण कराता है कि जैसे दीप अंधकार को दूर करता है, वैसे ही हमें अपने भीतर के अज्ञान, लोभ और भय को ज्ञान, सेवा और प्रेम से दूर करना चाहिए।
इस दिन आयुर्वेद का स्मरण करना आत्मचिंतन के बराबर है। आयुर्वेद कहता है कि शरीर और आत्मा का संतुलन ही जीवन की कुंजी है। धनतेरस पर यह आत्मनिरीक्षण का अवसर है कि हम अपने जीवन को कितनी सजगता और सात्विकता से जी रहे है।
धनतेरस केवल भौतिक वस्त्रों और गहनों की खरीदारी का दिन नहीं है, बल्कि यह अपने आध्यात्मिक खजाने को भरने का समय है — जैसे श्रद्धा, संयम, करुणा, सेवा और आत्मज्ञान। ये ही वे ‘धन’ हैं जो मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ रहते हैं।
धनतेरस हमें याद दिलाता है कि असली समृद्धि बाहरी नहीं, भीतरी होती है। इस पर्व पर हम न केवल घर को दीपों से सजाते हैं, बल्कि अपने अंतर्मन को भी ज्ञान और भक्ति के प्रकाश से आलोकित करने का संकल्प लेते हैं।
इस धनतेरस पर आइए, हम धन्वंतरि की कृपा से केवल तन को नहीं, मन और आत्मा को भी आरोग्य और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ाएं।
—स्वामी सत्यानंद भारती, जूना अखाड़ा



