Heavy rain: हर ओर कहर, फिर चाहे वह दिल्ली हो या वायनाड, पानी ही पानी…इसे कुदरत का कहर कहें या फिर लापरवाही…कुसूरवार किसे माना जाए, ये कहा नहीं जा सकता। क्योंकि बरसात तो हर साल ही आती है और बारिश का पानी भी हर साल ही कहर बरपाता है। ऐसे में कोई भी पुख्ता इंतजामात ना होना प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर बड़े सवाल खड़े कर रहा है। एक ओर दिल्ली पानी—पानी है, संसद भवन से लेकर गली, चौक—चौराहे तक पानी भरा है तो वहीं वायनाड में भी हालात बुरे हैं। Heavy rain
केरल के वायनाड में लैंडस्लाइड से आस-पास के चार गांव पूरी तरह साफ हो गए हैं। 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। वहीं जिन लोगों को अपने परिजनों के शव मिले हैं, वे सदमे में आ गए और जो अपनों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं, उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही हैं। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। पीड़ितों का दर्द ऐसा कि सुना भी ना जाए। चित्कारें मार—मार कर रोने वालीं मां, बहनें और पत्नियां जैसे शब्दों में अपनी पीड़ा बता भी नहीं पा रही हैं। Heavy rain
वहीं दिल्ली में एक ओर संसद भवन के अंदर बातों के व्यंग्य बाण छूट रहे हैं तो दूसरी ओर संसद भवन की छत खुद ही बारिश के आंसू बहाती हुई नजर आ रही है। सोशल मीडिया पर इसका वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। देश में एक ओर जहां जगह—जगह पानी ने त्राही—त्राही मचा दी है वहीं दूसरी ओर हर किसी के अपने जुमले हैं जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। नदियां उफान पर हैं लेकिन देश में उच्च पदों पर बिराजे जिम्मेदार अपनी कहानी अपनी जुबानी अलग ही शब्दों में बयान कर रहे हैं। किसे क्या कहा जाए, हाल ही में हुए निर्माण कार्य और ऐसी व्यवस्थाएं, जबकि देश में अब भी ऐसी इमारतों की कमी नहीं जो हजार साल पहले बनीं और आज भी जस की तस अपनी मजबूती के साथ खड़ी हैं। ये अपने जमाने की कहानी हर नई सुबह के साथ सुनाती हैं। हमारे पास कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब मिलना मुश्किल है। Heavy rain