धर्म/अध्यात्म

VIDEO: Shri Premananda Maharaj, भगवद् प्राप्ति दुर्लभ नहीं, दुर्लभ है भगवद् प्राप्त महापुरुषों का मिलना

Shri Premananda Maharaj : श्री धाम वृंदावन में विराजमान श्रीश्यामा-श्याम के नाम, रूप, लीला, धाम निष्ठ रसिक संत श्री हित प्रेमानन्द गोविंद शरण जी महाराज अध्यात्म जगत् की एक विशिष्टतम विभूति हैं। वह निरन्तर अपने सत्संग व सद्विचारों के द्वारा परमार्थ पथ की ओर अग्रसर साधकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं एवं व्यवहार-प्रपंच, विषय-भोगों में फंसे लोगों में आध्यात्मिक चेतना का संचार कर रहे हैं। वर्तमान समय में वे युवाओं के प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। आज का बहुत बड़ा युवा वर्ग उनके मार्गदर्शन में भगवद् प्राप्ति के लिए प्रयासरत हो अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए भगवद् भक्ति में लीन होने को लालायित है।

पूज्य महाराज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर के पास एक छोटे से ब्लॉक सरसौल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके पिता शंभूनाथ पांडे और माता रमा देवी, दोनों ही अत्यंत धार्मिक और भक्तिमय स्वभाव के थे। उनके दादा एक संन्यासी थे और बाद में उनके पिता ने भी संन्यास ग्रहण कर लिया। परिवार का माहौल बेहद सात्विक था, जहाँ संतों की सेवा और धर्मग्रंथों का पाठ नियमित होता था। उनके बड़े भाई संस्कृत के ज्ञाता थे और घर में भागवत गीता का पाठ करते थे, जिसे पूरा परिवार सुनता था। उनके परिवार का मुख्य आजीविका का साधन खेती था, जिससे वे अपना जीवन यापन करते थे। जिस उम्र में बच्चे खेलने में लगे रहते हैं, उस उम्र में प्रेमानंद जी महाराज भगवान की भक्ति में लीन हुए थे। महाराज जी ने बचपन में ही हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर दिया था। पाँचवीं कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते उन्होंने गीता प्रेस की ‘सुख सागर’ जैसी धार्मिक पुस्तकें पढ़नी शुरू कर दी थीं।

बचपन से ही उनके मन में जीवन के उद्देश्य को लेकर कई सवाल उठते थे, जैसे माता-पिता का प्रेम स्थायी है या अस्थायी? अगर स्थायी है तो मोह क्यों? और क्या स्कूल की पढ़ाई उन्हें उनके जीवन के लक्ष्य तक पहुँचा सकती है? अगर नहीं, तो इसे पढ़ने का क्या लाभ?
पूज्य महाराज जी भगवत् साक्षात्कार की प्रबल लालसा से 13 वर्ष की अल्पायु में ही गृहत्याग करके साधना पथ पर चल पड़े थे तथा उन्होंने संन्यास लेकर अपना अधिकांश जीवन ब्रह्मबोध प्राप्ति की इच्छा से उत्कट वैराग्य पूर्वक गंगा किनारे व्यतीत किया। काशी में आयोजित श्रीयुगल सरकार श्यामा-श्याम की रासलीला से आकर्षित होकर विश्वनाथ भगवान् की प्रेरणा से वे काशी से वृंदावन आये और विगत कई वर्षों से धाम निष्ठा के साथ श्रीहित हरिवंश महाप्रभु द्वारा प्रकट प्रिया-प्रियतम की रसोपासना में निमग्र हैं।

महाराज श्री का एकमात्र लक्ष्य यही है कि हमारे देशवासी अशान्ति, दुःख, क्लेश और भय प्रदान करने वाले असत् आचरणों (जुआ, मांस-मदिरा, हिंसा, व्यभिचार आदि) का त्याग कर, अपने कर्तव्य कर्म का दृढ़तापूर्वक भगवद् समर्पित करते हुए पालन करें एवं इस संसार में भी सुख-शान्तिमय जीवन व्यतीत कर मानव जीवन के चरम लक्ष्य भवबंधन से मुक्त हो भगवद् प्राप्ति करें। महाराज जी भगवद् प्राप्ति के लिए सभी को एक समान पात्र मानते हैं। वे कहते हैं कि हम सभी भगवान् के अंश हैं और प्रभु की प्राप्ति के लिए समान अधिकार रखते हैं अर्थात् प्रभु के प्रेम की प्राप्ति या भगवद् प्राप्ति में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है क्योंकि भगवान के लिए उनके सभी बच्चे एक समान हैं।Shri Premananda Maharaj

महाराज श्री समस्त शास्त्रों, सिद्धान्तों व उपदेशों का सार यही बताते हैं कि भगवद् आश्रित होकर निरन्तर भगवान् के नाम का जप करते रहने से, प्रभु के प्रत्येक विधान में संतुष्ट रहने से, गन्दे आचरणों का त्याग करने से एवं भगवद् भाव से सबकी सेवा करने से एक दिन भगवान की प्राप्ति की जा सकती है। संतों का कहना है कि जन्मों के अच्छे आचरण और भगवान की सेवा के बाद ही वृंदावन में निवास होता है। जब राधा रानी की बात होती है, तो राधा वल्लभ संप्रदाय के महान संत श्री प्रेमानंद जी महाराज का नाम आता है।Shri Premananda Maharaj

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