गुड़ी पड़वा : चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है
नववर्ष के स्वागत का प्रतीक

गुड़ी पड़वा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल माह में आता है। गुड़ी पड़वा का यह दिन न केवल नए वर्ष के स्वागत का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और खुशहाली का प्रतीक भी है। इसी दिन से चैत्र नवरात्र का पावन पर्व भी शुरू हो जाता है।
गुड़ी पड़वा का नाम “गुड़ी” और “पड़वा” से आया है। “गुड़ी” का अर्थ होता है ध्वजा, जो एक लकड़ी के खंभे पर स्थापित की जाती है और उसके ऊपर रंगीन कपड़ा, बेल, आम के पत्ते और एक बर्तन रखा जाता है। यह गुड़ी घर के आंगन में या बाहर नई शुरुआत और सुख-समृद्धि के संकेत के प्रतीक स्वरूप स्थापित की जाती है। इस दिन को लोग घरों की सफाई करते हैं और नए सामान खरीदते हैं, ताकि आने वाला समय अच्छा और समृद्ध हो।
गुड़ी पड़वा का पर्व खासतौर पर महाराज श्री छत्रपति शिवाजी की विजय के समय से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इस दिन शिवाजी ने अपनी शक्ति और विजय के प्रतीक के रूप में गुड़ी स्थापित की थी। इस दिन लोग अपने घरों में सजावट करते हैं, नए वस्त्र पहनते हैं और परिवार के साथ नववर्ष की खुशियाँ मनाते हैं क्योंकि यह दिन सिर्फ एक नया साल नहीं, बल्कि जीवन में नयी उम्मीदों और सकारात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक होता है।
गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर नए वर्ष का स्वागत करते हैं। इस दिन लोग कुछ खास व्यंजन जैसे पूरन पोली, शक्कर पारे, श्रीखंड आदि बनाते हैं। साथ ही लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं और जीवन में एक दूसरे की सफलता, समृद्धि और सुख-शांति की कामना करते हैं।
गुड़ी पड़वा हमें यह सिखाता है कि हमें हर दिन को एक नए अवसर के रूप में देखना चाहिए और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।