चैती छठ पूजा: मन्नतों को पूरा करती हैं छठी मईया
4 अप्रैल को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर होगा समाप्त

चैती छठ पूजा सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। मान्यता है कि सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने यह व्रत किया था। छठी मईया को संतान सुख देने वाली देवी माना जाता है, इसलिए खासकर महिलाएँ यह व्रत पूरी श्रद्धा से करती हैं। मुख्य रूप से बिहार और झारखंड में मनाया जाने वाला यह त्योहार गहरी भक्ति, कठोर उपवास और खुशहाली और समृद्धि के लिए प्रार्थना का समय है। छठ पूजा सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। दुनिया का यह इकलौता ऐसा व्रत है जिसमें डूबते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी का निर्माण आरंभ किया तब उन्होंने प्रकृति का भी निर्माण किया। इसके बाद देवी प्रकृति ने स्वयं को छह रूपों में विभाजित किया और प्रकृति के ही छठे अंश को छठी मैया के रूप में जाना जाता है। इसी कारण छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है।
चैती छठ में घाटों पर उतनी भीड़ नहीं होती है क्योंकि चैती छठ का व्रत कोई कामना पूर्ति हेतु या पूर्ण होने पर ही किया जाता है। परंतु इस समय भी व्रत के सारे नियम व विधियाँ कार्तिक महीने की छठ जैसे ही होती हैं। कार्तिक मास में मिलने वाले कई फल चैत्र के महीने में बाजार में उपलब्ध नहीं होते हैं इसलिए जो फल उपलब्ध होते हैं उनके साथ ठेकुआ, पुड़ुकिया, कसार जैसे पकवानों से पूजा की जाती है।
इस बार चैती छठ का चार दिवसीय व्रत 1 अप्रैल 2025 से शुरू होगा। पहला दिन नहाय-खाय होगा जिसमें व्रती गंगा स्नान कर बिना लहसुन प्याज का सात्विक प्रसाद ग्रहण करते हैं। 2 अप्रैल को खरना होगा जिसमें गुड़ की खीर और रोटी खाई जाती है इसके बाद निर्जला उपवास शुरू होगा। 3 अप्रैल को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 4 अप्रैल को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होगा। छठी मैय को संतान प्राप्ति की देवी भी कहते हैं। चैती छठ को सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित किया गया है। यह पर्व प्रकृति और सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता दिखाने के उद्देश्य से मनाया जाता है इस दिन बच्चों के लिए आरोग्य की कामना की जाती है।