Shani Jayanti : ग्वालियर के पास ऐंती पर्वत पर शनि देव का चमत्कारी मंदिर, यहां शनिदेव ने खोई हुईं शक्तियां की थी प्राप्त

भोपाल।आज शनि जयंती है और पूरे देश में यह बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। शनि को न्याय का देवता माना जाता है। आज शनि मंदिरों में भक्तों की जमकर भीड़ रहती है। वहीं आज शनि जयंती के अवसर पर हम आपको एक ऐसे शनि मंदिर के बारे जा रहे है जिसकी स्थापना सम्राट विक्रमादित्य ने कराई थी।संवत् 1806 में महादजी सिंधिया के मामा दौलतराव सिंधिया ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
यह मंदिर ग्वालियर के पास ऐंती में है। बताया जाता है कि जब हनुमान जी लंका दहन कर रहे थे। उस समय उन्होंने रावण की कैद से शनिदेव को छुड़ाया था। जब हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के चंगुल से छुड़ाया उस समय हनुमान जी ने उनसे शीघ्र लंका छोड़ने के लिए कहा,
तब शनिदेव ने कहा, कि मैं कई समय से रावण की कैद में होने के कारण दुर्बल हो गया हूं। इस लिए में शीघ्र लंका नहीं छोड़ सकता। तब हनुमान जी ने शनिदेव के आग्रह करने पर उन्हें पूरे वेग से भारत की और फेंका और वो एमपी के मुरैना में स्थित ऐंती पर्वत पर आकर गिरे। माना जाता है कि शनि देव ने इसी पर्वत पर कठिन तप करके अपनी शक्तियों को दोबारा प्राप्त किया था। कहा जाता है कि यहां जो भी भक्त सच्चे मन से शनिदेव को तेल अर्पित करता है।शनिदेव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। शनि जयंती के दिन यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है। शनिश्चरी अमावस्या और शनि जयंती पर देशभर से यहां भक्त पहुंचते हैं।
इसे पर्यटन विभाग ने केंद्र की प्रसाद योजना में शामिल करने के लिए 120 करोड़ रु. का प्रस्ताव भेजा है। यहां शनि लोक बनेगा। साथ ही शनि की परिक्रमा देने के लिए मार्ग बनाया जाएगा, जिसमें सप्तऋषियों की मूर्तियां लगाई जाएंगी। कहा जाता है कि पुणे के एक सेठ भक्ति में यहीं बस गए। जब वह वापस गए तो एक शिला साथ गए।उन्हें सोचा की आने वाली पीढ़ी इस शिला की सेवा नहीं करेगी।तो उन्होंने शिला को नदी में बहा दी।
उसके कुछ समय बाद शनिदेव ने सिंगणापुर के लोगों को सपना दिया। सपना आने के बाद लोग ने शिला निकलवाकर स्थापना की। मान्यता है कि स्थापित शनिदेव की प्रतिमा आकाश से गिरे उल्कापिंड से बनी है इसका रंग गहरा काला व चुंबकीय है। यह मंदिर तंत्र साधना के लिए भी जाना जाता है।