साक्षात्कार
सावन की कविता : झूले का आनंद

भोपाल।झूले का आनंद
झूल रही हैं सखियाँ सारी झूल रहा बृजधाम।
मेरी राधिका झूला झूले संग झूलें घनश्याम ।।
सावन की ऋतु बड़ी सुहानी जैसे हरा बागान ।
सबका मन यूँ झूम रहा जैसे वृन्दावन धाम ।।
रिमझिम रिमझिम पड़े फुहारे सखियाँ गायें मल्हार ।
लाता बेल भी झूम रहीं हैं सब मस्ती के साथ ।।
चूड़ी बिछिया कंगन बेंदी बोल रहा श्रृंगार ।
सजधज करके आईं राधिका तीजों का त्योहार ।।
कोयल कूके पपीहा बोले हवा सुनाए गीत ।
झूला झूलें श्याम राधिका जैसे नई नई हो प्रीत ।
झूला झूलकर खुशी मनाये ये सारा संसार ।
झूम उठा है सबका तनमन भूल गए हर बात ।।
जीवन के सब दुख भूले ,हो गए सब मशगूल ।
झूला झूलें श्याम राधिका हो मस्ती में चूर ।।
सृष्टि का सब वैभव लूटें हो गए मालामाल ।
हंसते खेलते बीते सावन ये आये हर बार ।।
हरी भरी ये वसुधा बोले हमसे बारम्बार ।
ध्यान रखो मेरा मिलजुलकर सुखी बने संसार ।।
रीना मिश्रा