Sheetala Ashtami 2025:शीतला अष्टमी /बसौरा

अधिकतर शीतला अष्टमी का व्रत केवल चैत्र कृष्ण अष्टमी को होता है। किंतु स्कन्द-पुराण में चैत्रादि ४ महीनों में इस व्रत के करने का विधान है। इसमें ( व्रतमात्रेऽष्टमी कृष्णा पूर्वा शुक्लाष्टमी परा (माधव) पूर्व-विद्धा अष्टमी ली जाती है।
व्रती को चाहिये कि अष्टमी को शीतल जल से प्रातः स्नानादि करके संकल्प ले।
“मम गेहे शीतलारोगजनितोप द्रव-प्रशमन-पूर्वक-आयु-आरोग्य-ऐश्वर्याभि-वृद्धये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये ।”
उपरोक्त संकल्प के उपरान्त सुगन्ध युक्त गन्ध-पुष्पादि से शीतला माता का पूजन करके प्रत्येक प्रकार के मेवे, मिठाई, मालपुआ, पूरी, दाल-भात, लपसी और रोटी तरकारी आदि कच्च्चे-पक्के, सभी शीतल पदार्थ (पहले दिन के बनाये हुए) भोग लगाये और शीतला स्तोत्र का पाठ करके रात्रि में जागरण और दीपावली दीप दान करे।
नैवेद्य में मास के अनुसार विशेषता है कि चातुर्मासी व्रत हो तो
“भक्षयेद् वटकान् पूपांश्चैत्रे शीतजलान्वितान् ।
वैशाखे सक्तुकं तावत् साज्यं शर्करयान्वितम् ॥
एवं या कुरुते नारी व्रतं वर्षचतुष्टयम् ।”
1 चैत्र में शीतल पदार्थ,
2 वैशाख में घी और शर्करा से युक्त सत्तू,
3 ज्येष्ठ में पूर्व दिन के बनाये हुए अपूप (मालपूए) और
4 आषाढ़ में घी और शक्कर मिली हुई खीर का नैवेद्य अर्पण करे।
इस प्रकार करने से व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्ध युक्त फोड़े नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुसियों के चिह्न और शीतला जनित सर्व-दोष दूर होते हैं और शीतला सदैव संतुष्ट रहती है। शीतला स्तोत्र में शीतला का जो स्वरूप बतलाया है, वह शीतला के रोगी के लिये बहुत हितकारी है।
उसमें बतलाया है कि शीतला दिगम्बरा है, गर्दभ पर आरूढ़ रहती है, सूप, मार्जनी (झाडू) और नीम के पत्तों से अलंकृत होती है और हाथ में शीतल जल का कलश रखती है। वास्तव में शीतला के रोगी के सर्वांग में दाह युक्त फोड़े होने से वह बिलकुल नग्न हो जाता है। गर्दभ पिण्डी’ (गधेकी लीद) की गन्ध से फोड़ों की पीड़ा कम होती है। सूप के काम (अन्न की सफाई आदि) करने और झाडू लगाने से बीमारी बढ़ जाती है, अतः इन कामों को सर्वथा बंद रखने के लिये सूप और झाडू बीमार के समीप रखते हैं। नीम के पत्तों से शीतला के फोड़े इन्फेक्शन नहीं कर सकते और शीतल जल के कलश का समीप रखना तो आवश्यक है।
शीतला की पूजा करने से क्या लाभ हैं –
तत्कुले नोप-सर्पन्ति गलगणड ग्रहादयः ।
विष्फोटकभयं घोरे कुले तस्य न जायते ।
शीतले ज्वरदग्धस्य पूतगन्धगतस्य च ॥ प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ।
माता शीतला का ध्यान मंत्र –
वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी-कल-शोपेतां शूर्पालंकृत मस्तकाम् ॥
