भगवान विष्णु के निद्रा में जाने के बाद, शिव के साथ और कौन- कौन संभालता है सृष्टि के संचालन का भार…

श्रावण मास यानी सावन का महीना शिव का महीना माना जाता है। इस मास में भोलेनाथ के सावन सोमवार, तीज,नाग पंचमी जैसे कई त्योहार मनाए जाते हैं। लेकिन सावन का महीना क्यों होता है शिव को समर्पित ? इसे लेकर वैसे तो कई पौराणिक कथाएं हैं। पर कहा जाता है कि सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु हैं। जो सारी सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। लेकिन देवशयनी एकादशी के बाद जब विष्णु भगवान निद्रा अवस्था में जाते हैं।और सभी शुभ काम शादी ब्याह होना भी बंद हो जाते हैं।ऐसा कहा जाता है तब भगवान विष्णु 6 महीने के लिए सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव को सौंप जाते हैं।
इस महीने में भगवान शिव अपने ससुराल, यानी पृथ्वी पर आते हैं । कहा जाता है कि देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। और शिव उनको मिल गए थे। एक और पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इसी महीने में शिव ने समुद्र मंथन के दौरान निकलने वाले विष को पीकर पृथ्वी को नष्ट होने से बचाया था। इसलिए सावन का महीना शिव को पूरी तरह समर्पित होता है।
वहीं सावन के बाद भाद्रपद लग जाता है इस दौरान कृष्ण को पृथ्वी का कार्यभार संभालने के लिए सौंप दिया जाता है।भाद्रपद में कृष्ण जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का जन्म होता है। कुछ दिनों तक कृष्ण सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं।
उसके बाद वो सृष्टि का संचालन गणेश जी को दे देते हैं। गणेश चतुर्थी के 10 दिन तक सृष्टि के संचालन का कार्यभार गौरी पुत्र गणेश संभालते हैं।माना जाता है कि गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का जन्म हुआ था इसलिए 10 दिनों तक पृथ्वी पर गणेश उत्सव मनाया जाता हैं।
इसके बाद पितृ पक्ष लग जाता हैं यह 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान पितृ सृष्टि का कार्यभार संभालते है। पितृ पक्ष खत्म होते ही, देवी मां के नवरात्रे लग जाते हैं।
नवरात्री के दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा पृथ्वी के संचालन को देखती हैं। इस दौरान देवी मां की झांकी लगाई जाती हैं। साथ ही मां के भक्त 9 दिन उपवास व्रत रखते हैं।
इसके बाद 10 दिनों तक कुबेर जी सृष्टि का संचालन करते है और फिर दीवाली के बाद देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु फिर से निद्रा से जाग जाते हैं।और पृथ्वी का कार्यभार देखने लगते हैं। इसी के साथ फिर से सारे शुभ कार्य जैसे शादी करना ,गृह प्रवेश करना, मुंडन करवाना आदि