Akha Teej : अक्षय तृतीया पर क्यों होती हैं बिना मुहूर्त की शादियां

भोपाल।हिंदू धर्म में शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त की गणना अत्यंत आवश्यक मानी जाती है। विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार को विशेष रूप से शुभ समय में ही करने की परंपरा रही है। किंतु अक्षय तृतीया एक ऐसा दिन है, जो इस सामान्य नियम का अपवाद बनता है। इस दिन बिना किसी विशेष मुहूर्त के विवाह संपन्न किए जाते हैं। इसका कारण इस तिथि की आध्यात्मिक और ज्योतिषीय विशेषता है।
अक्षय तृतीया वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आती है। यह दिन ‘अबूझ मुहूर्त’ या ‘सर्वसिद्ध योग’ के रूप में जाना जाता है। इस तिथि को इतना शुभ माना गया है कि इसमें किए गए कार्यों के लिए अलग से मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों उच्च राशि में होते हैं, जिससे दिन में सकारात्मक ऊर्जा की अधिकता रहती है।
‘अक्षय’ शब्द का अर्थ होता है — जिसका कभी क्षय न हो। मान्यता है कि इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य, दान या संस्कार चिरस्थायी फल देता है। यही कारण है कि विवाह जैसे शुभ संस्कार भी इस दिन अत्यंत शुभ माने जाते हैं और इन्हें बिना विशेष मुहूर्त के संपन्न किया जा सकता है।
धार्मिक दृष्टि से भी यह दिन कई पौराणिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। भगवान परशुराम का जन्म, पांडवों को अक्षय पात्र की प्राप्ति, और त्रेता युग का आरंभ इसी तिथि से जुड़ा हुआ माना जाता है। ये घटनाएँ इस दिन की शुभता को और भी बल देती हैं।
समाज में यह धारणा गहराई से रची-बसी है कि अक्षय तृतीया का दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए स्वयं एक मुहूर्त है। इसीलिए देश के कई हिस्सों में इस दिन हजारों विवाह सम्पन्न होते हैं—पूरे विश्वास और हर्षोल्लास के साथ, बिना किसी अतिरिक्त मुहूर्त के।
अतः यह स्पष्ट है कि अक्षय तृतीया की ज्योतिषीय स्थिति, धार्मिक मान्यताएँ और सामाजिक परंपराएँ, इस दिन को विशेष बनाती हैं, जहाँ विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार बिना किसी संशय के किए जाते हैं।