विक्रमोत्सव 2025 : विक्रम नाट्य समारोह अंतर्गत वराहमिहिर का मंचन
वराहमिहिर को पिता से मिला था कालगणना का ज्ञान

उज्जैन, महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा विक्रमादित्य, उनके युग, भारत उत्कर्ष, नवजागरण और भारत विद्या पर एकाग्र विक्रमोत्सव 2025 अंतर्गत विक्रम नाट्य समारोह के छठवें दिन मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल द्वारा तैयार एवं लोकेन्द्र त्रिवेदी द्वारा निर्देशित वराहमिहिर का मंचन हुआ। मालवा के लोकनाट्य माच का पूर्वरंग देवताओं की जय से आरंभ होता है। उसके बाद नाटक के पात्रों का परिचय होता है। बेढब भिस्ती और फर्रासन आकर सांगीतिक छिड़काव और जाजम बिछाते हैं। इसके बाद बेढब और बसंती वराहमिहिर के आने की सूचना देते हैं। प्रस्तुति में यह दिखाया गया है कि सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर को अपने पिता से कालगणना का ज्ञान प्राप्त हुआ बाद में उन्होंने इसे और आगे बढ़ाया। इसके पहले इसके पहले महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी, विक्रमोत्सव आयोजन समिति के सदस्य राजेश सिंह कुशवाह एवं वरिष्ठ पुराविद डॉ. रमण सोलंकी ने कलाकारों का स्वागत किया।

प्रस्तुति में एक प्रसंग आता है कि कायथा गाँव के निवासी अपने गाँव में हो रही खुदाई से चिंतित हैं। तभी पुरातत्वविद विष्णु श्रीधर वाकणकर आते हैं, वे प्राचीन कापित्थक नगर और वहाँ के आचार्य वराहमिहिर के बारे में बताते हैं। वराहमिहिर आकाश के तारों को लेकर माँ से अनेक प्रश्न पूछते हैं। पुरातत्वविद वाकणकर गुरूकुल में सारे विश्व से आने वाले विद्यार्थियों के बारे में बताते हैं। वराहमिहिर, पिता आदित्यदास से वृक्षों और अंतरिक्ष के बारे में प्रश्न पूछते हैं। पिता विश्व के सिद्धांतों की जानकारी देते हैं। गुरुकुल की शिष्याएँ इत्र व्यापारी से शरारत करती हैं। पिता आदित्यदास वराहमिहिर को प्रकाश से कालगणना करना बताते हैं और ग्रहण की विशेषताओं के बारे में पूछते हैं। वराहमिहिर के सहपाठी द्वारा लिखे जा रहे ग्रंथ पंचसिद्धांतिका के बारे में जानकारी लेते हैं। वराहमिहिर से इरावती सेना के बारे में पूछती है। शिष्य आकर शकों के आक्रमण के बारे में सूचना देता है। आचार्य ग्रामसेना के बारे में बताते हैं। सम्राट विक्रमादित्य आकर ग्राम सेना योजना की प्रशंसा करते हैं। आचार्य सभी को प्रेरित करते हैं। सम्राट विक्रमादित्य रोमन यात्री प्लायनी से चर्चा कर रहे होते हैं। आचार्य वराहमिहिर मालव पंचांग लेकर आते हैं। सम्राट विक्रमादित्य शकों से विजय के उपलक्ष्य में नवसंवत्सर आरंभ होने की घोषणा करते हैं और उत्सव मनाया जाता हैं। शिष्य आचार्य वराहमिहिर के यंत्रों के बारे में बात करते हैं। आचार्य शंकु अपने शंकु यंत्र के बारे में बताते हैं। कायथा के ग्रामवासी अपने गाँव के गौरवशाली इतिहास को जानकर प्रसन्न होते हैं। वाकणकर इसके बारे में जागृति लाने की बात करते हैं।
सम्राट विक्रमादित्य इन्द्रप्रस्थ में लौह स्तम्भ के स्थापना की बात करते हैं। उसके बाद वे श्रीमहाकालेश्वर में समयमापक जलघट यंत्र की स्थापना करते हैं। आचार्य अपने पुत्र पृथुयशस और पुत्रवधु खना को ईरान भेजते हैं।

आज की प्रस्तुति कर्णभार
समारोह के सातवें दिन 27 मार्च 2025 को सायं 07:00 बजे कालिदास अकादमी के बहिरंग मंच पर त्रिवेंद्रम की संस्था द्वारा कर्णभार का मंचन होगा जिसका निर्देशन नारायणी पणिक्कनर द्वारा किया गया है। इसी कड़ी में 28 मार्च को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम् की प्रस्तुति होगी। जिसका निर्देशन राजेश सिंह द्वारा किया गया है। समारोह के अंतिम दिन मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय द्वारा तैयार किया गया नाटक मृच्छकटिकम् का मंचन होगा। जिसका निर्देशन मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक टीकम जोशी द्वारा किया गया है।
