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होली के पीछे का इतिहास, जानें क्यो मनाते है रंगपंचमी

होली आते ही सबके चेहरे पर रौनक आ जाती हैं। होली का त्यौहार हम क्यों मनाते है? और होलिका दहन से जुड़ी भक्त प्रहलाद की पौराणिक कथा तो लगभग हम सब जानते हैं। लेकिन क्या आप होली के इतिहास के बारे में जानते हैं?अगर नहीं तो, आज हम इस लेख के द्वारा आपको होली के इतिहास और होली से जुड़ी और भी कई पौराणिक कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं।

होली का इतिहास

होली का इतिहास बहुत ही पुराना है। विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं सदी के एक मंदिर में इस त्यौहार से जुड़ी कई चित्र आकृतियाँ देखने को मिलती हैं।ऐसे ही कई पत्थरों पर विंध्य पर्वतों के पास स्थित रामगढ़ में चित्र बने हुए हैं।साथ ही मेवाड़ में भी होली के त्यौहार के चित्र देखने को मिलते हैं।कुछ शक्क्ष मिले जिसमें बताया गया है कि यह त्यौहार 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता है।

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होली से जुड़ी पौराणिक कथाएं

शिव ने कामदेव को किया था भस्म

कहा जाता है कि होली वाले दिन शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद फिर से जीवित कर दिया था। इस लिए होली का त्यौहार मनाते हैं।

होली को लेकर एक कथा यह भी है।कि इस दिन राजा पृथु ने अपने राज्य के बच्चों की रक्षा करने के लिए राक्षसी ढूंढी को आग में जलाकर भस्म कर दिया था। इस लिए होली मनाई जाती है।

आर्यों का होलिका दहन

प्राचीन समय में आर्य लोग होली का त्यौहार होलाका के नाम से मानते थे।वे होलका नाम से हवन करते थे। और हवन के बाद प्रसाद खाते थे।

लेकिन वर्तमान समय में सभी लोग होलिका को जलाते हैं।और बाद में उसी आग में आटे से बनी बाटी सेंकते हैं। और उसमें गुड़ डालकर प्रसाद के रूप में खाते हैं।और दूसरे दिन रंग खेलते हैं। कहा जाता है कि रंग खेलने की शुरुआत श्री कृष्ण के समय से हुई है। पहले होली पर टेसू के फूलों से रंग बनाकर होली खेलते थे।

रंग पंचमी मनाने के पीछे की वजह

होली के पाँचवें दिन रंग पंचमी मनाई जाती हैं। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने राधा को रंग पंचमी के दिन रंग लगाया था। जिस वजह से रंगपंचमी मनाई जाती है।साथ ही यह भी कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने होली को प्रेम और रंग के त्यौहार से जोड़ा था।

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